SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने अपराधों की स्पष्ट स्वीकारोक्ति के बाद यह क्षमा याचना कितनी मर्मस्पर्शी है _ 'पंथहि धावर मांहि तथा त्रस जीव सब बे इन्द्रिय तिय चउ, पंचेन्द्रिय माँहि जीव सब तिनते क्षमा कराऊँ, मुझ पर क्षमा करो अब और अन्त में यह मंगल कामना - दोष रहित जिनदेवजी, निजपद दीज्यो मोय सब जीवन के सुख बढ़ें, आनन्द मंगल होय जैन धर्म के अनेकान्त सिद्धान्त की चर्चा के बिना पर्यावरण रक्षा की बात अधूरी रहेगी। वैचारिक हिंसा को रोकने के लिये यह सिद्धान्त अमोघ अस्त्र है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु उत्पाद व्यय ध्रोव्य रूप त्रयात्मक है। प्रत्येक वस्तु विरोधी धर्मों का समन्वित रूप है। वस्तु के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए हमें अपनी दृष्टि को व्यापक बनाना होगा। "ही" के स्थान पर 'भी' को प्राथमिकता देने वाले इस अनाग्रही, उदार और सन्तुलित सिद्धान्त में आत्मानुशासन तथा जीवन के अन्य विविध सन्दर्भो के लिए एक विधायक जीवन दृष्टि समाई हुई है। जर्मन विद्वान डा. हर्मन जैकोवी का यह कथन अक्षरश: सत्य है - "स्याद्वाद से तो सर्व सत्य विचारों का द्वार खुल जाता है" उपर्युक्त विवेचन से वह स्पष्ट है कि सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से जैन धर्म पर्यावरण रक्षा के प्रति अत्यधिक सजग है। एक विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह है कि जैन धर्म केवल भौतिक पर्यावरण की शुद्धि के लिए ही प्रयत्नशील नहीं है अपितु अन्त: पर्यावरण की विशद्धि के लिए भी प्रतिबद्ध है। भौतिक पर्यावरण की शद्धि के लिए आत्मशुद्धि एक अनिवार्य आवश्यकता है। जैन धर्म की वर्णमाला का केवल एक अक्षर अ - (अ से अनेकान्त, अ से अहिंसा और अ से अपरिग्रह) ही मनुष्य के अन्तर के समस्त प्रदूषण को विनष्ट करने में सक्षम है। अत: निराश होने की आवश्यकता नहीं। इस दमघोटू प्रदूषित वातावरण में अभी भी एक नदी सुरक्षित है जिसमें स्नान करने से बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रदूषण समाप्त हो जाते हैं। यह अलौकिक नदी है - __ आत्मानदी संयम तोय पूर्णा, सत्याबहा शीलतटा दयोर्मिः। तत्राभिषेक कुरू पाण्डुपुत्र, न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा।। आइये हम और आप मिलकर इस नदी में स्नान करें। सन्दर्भ स्थल - 1. कामायनी - जयशंकर प्रसाद 2. आचारांग सूत्र - 1/2/3 3. तत्वार्थ सूत्र - उमास्वामी 4. तत्वार्थ सूत्र - उमास्वामी 5. तत्वार्थ सूत्र - उमास्वामी 6. वर्धमान चरित्र - असग 17/38-41 प्राप्त - 12.6.96 अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy