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________________ वर्ष- 11, अंक-4, अक्टूबर 99, 41-43 कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) अर्हत् वचन दार) प्रकृति पर्यावरण के संदर्भ में आहार का स्वरूप - राजेन्द्रकुमार बंसल * जीवधारी अपना जीवन बनाये रखने हेतु प्रकृति के भोज्य उपहारों पर निर्भर करते हैं। प्रकृति के पंचभूत तत्त्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति हैं। ये न केवल परस्पर एक-दूसरे के जीवन का पोषण करते हैं बल्कि वे अन्य जीवधारियों को पोषण सामग्री तथा जीवन बनाये रखने हेतु अनुकूल पर्यावरण का निर्माण करते हैं। पंचभूत तत्त्वों की यह क्रिया - प्रतिक्रिया प्रकृति के नियमों के अन्तर्गत सहज, स्वाधीन एवं स्वतंत्र होती है जो किसी भी प्रकार के कृत्रिम या आकस्मिक असंतुलन को दूर करने में स प्रकृति की यह व्यवस्था परिवर्तन के मध्य स्थायित्व के नियम से जुड़ी हुई है जो जड़ - चेतन जीवों के मध्य अपना स्थायित्व कायम रखते हुए परस्पर उपकार करने की प्रवृत्ति को पुष्ट करती है। जीवधारियों को स्थूल रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। पहले वे जो प्रकृति के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं जिन्हें पंचभूत तत्त्व भी कहा जाता है। यह तत्त्व परस्पर एक-दूसरे का सहयोग कर भोजन - सामग्री प्रदान करते हैं जिसके लिये उन्हें पृथक से परिश्रम नहीं करना पड़ता। दूसरे प्रकार के जीवधारियों में कीड़े-मकोड़े, पशु - पक्षी आदि सम्मिलित हैं। ये जीवधारी अपना भोजन प्राय: अपने शरीर की आकृति एवं जीवन को कायम रखने की क्षमता शक्ति आदि के अनुसार प्रकृति एवं अन्य जीवों के कलेवर के रूप में ग्रहण करते हैं। उनके भोजन की इस आदत का विश्लेषण करने पर यह तथ्य प्रकट होता है कि एक जीव का कलेवर दूसरे जीव का भोजन होता है भले ही उस कलेवर का स्वरूप वनस्पति - बीज - फल रूप में हो या अन्य रूप में हो। भोजन की दृष्टि से जानवरों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। एक वे जिनका जीवन वनस्पति पर निर्भर करता है जैसे गाय, बैल, गेंडा, बकरी, घोड़ा, हाथी, नीलगाय, सांभर आदि। ये जानवर शाकाहारी कहलाते हैं। इन जानवरों का पैट, दांत, जबड़े, आंतों आदि की बनावट भी उसी प्रकार की होती है। इनकी मुखाकृति सहज, सौम्य होती है। ऐसे जीवों के नेत्रों से रात्रि में नीली रोशनी निकलती है। ये पशु प्राय: दिन में अपना भोजन करते हैं और रात्रि में विश्राम करते हैं। दूसरे प्रकार के पशुओं का भोजन उनसे कम शक्तिवान जानवरों का कलेवर होता है अर्थात वे मांसाहारी होते हैं जिसे वे शिकार करके प्राप्त करते हैं। ऐसे जानवर सिंह, तेंदुआ, भेड़िया, सियार, चीता आदि होते हैं। इन जानवरों के दांत पैने - नुकीले, आंतें छोटी और आंखें लाल होती हैं। इनके चेहरे से हिंसक, क्रूर एवं रौद्र परिणामों की झलक सहज ही दिखायी देती है। ये जानवर प्राय: लुक - छिपकर विशेषकर रात्रि में भोजन का शिकार करते हैं और दिन में खोह या माँद में घुसकर विश्राम करते हैं। रात्रि में उनकी आंख से लाल रंग की रोशनी निकलती है जो उनके आन्तरिक क्रूर परिणामों की सूचक होती है। ये पशु अपने भोज्य पशुओं की हिंसा अपनी उदरपूर्ति की सीमा तक करते हैं। वे अपने मनोरंजन या शक्ति प्रदर्शन के लिये अन्य जानवरों की हत्या या उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचाते। शाकाहारी एवं मांसाहारी जीवों के मध्य तुलना करने पर यह बात अनुभव में आती है कि हाथी - गेंडा - घोड़ा आदि शाकाहारी पशु, मांसाहारी शेर - चीता की तुलना में अधिक ताकतवर होते हैं। शाकाहारी पशु प्रकृति की स्वचालित व्यवस्था के नियमों में न्यूनतम हस्तक्षेप * बी-369, ओरियन्ट पेपर मिल्स कालोनी, अमलाई - 484 119 जिला शहडोल (म.प्र.)
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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