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वर्ष - 11, अंक - 4, अक्टूबर - 99, 29 - 31
अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
क्या है प्राचीन उदयगिरि - खंडगिरि
. गुफाओं का भविष्य?
- गौरव छाबड़ा*
खण्डगिरि उदयगिरि दिगम्बर जैन परम्परा का प्राचीन सिद्ध क्षेत्र है। यह स्थान भुवनेश्वर रेल्वे स्टेशन से 8 कि.मी. की दूरी पर है। इस स्थान से जसरथ के 500 पुत्रों ने निर्वाण प्राप्त किया था। यहाँ पर करीबन 2000 वर्षों से भी अधिक प्राचीन शिलालेख, प्रतिमायें और मुनियों के ध्यान-अध्ययन करने योग्य कई मनोज्ञ गुफाएँ है। संक्षिप्त इतिहास -
भारतवर्ष के इतिहास में कलिंग का स्थान अत्यंत ऊँचा और महत्वपूर्ण है। प्राचीन कलिंग के इतिहास में जैनधर्मी महा मेघवाहन सम्राट का शासनकाल एक स्वर्णिम काल है। खारवेल का जन्म एक जैन परिवार में हुआ था। अत: जैन धर्म का गौरववर्धन उनके लिए स्वाभाविक कर्तव्य था।
कलिंग का प्रथम ज्ञात संगठित धर्म, जैन धर्म था। भगवान महावीर ने अपने देशनाकाल में कलिंग की राजधानी तोशाली में धर्मोपदेश किया था। मगध राजा नन्द ने तोशाली से ही ऋषभ जिन की प्रतिमा का हरण कर उसे मगध में स्थापित किया था। 300 वर्ष पश्चात इसी प्रतिमा को कलिंग सम्राट खारवेल ने मगध के तत्कालीन राजा पुष्यमित्र से प्राप्त कर राष्ट्रीय समारोह पूर्वक पुन: तोशाली में स्थापित किया। सम्राट खारवेल का समय ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी है। पर्वत पर गुफाएं व मंदिर -
जैन धर्मशाला से लगभग 50 गज चलने पर बांई सीढियों पर चढकर खण्डगिरि पर्वत की चोटी पर छोटे बड़े 5 मंदिर बनें हैं। ये सभी मंदिर आधुनिक हैं। जनश्रुति के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण 19 वीं शताब्दी में कटक के मंज चौधरी ने करवाया था। खारवेल के राजत्वकाल में उदयगिरि खंडगिरि में कितनी गुफाएं थी, यह बताने के लिए कोई विश्वसनीय तथ्य नहीं हैं। यह निश्चित रूप से सत्य है कि मनुष्य और प्रकृति के हाथों कई गुफाएं ध्वंस हो गई हैं। वर्तमान में उदयगिरि में 18 और खंडगिरि पर 15 गुफाएं हैं। यहां एक बात की और विशेष रूप से ध्यान जाता है कि यहाँ गफाओं में जितनी जैन मूर्तियाँ प्राप्त होती है, वे सभी दिगम्बर परम्परा की है। उदयगिरि पर्वत का गुफा समूह - .
इस पर्वत का प्राचीन नाम कुमारी पर्वत था। यहाँ की गुफाओं में सबसे महत्वपूर्ण हाथी गुफा है। इस प्राकृतिक गुफा की. अंदरूनी छत पर महाराजा खारवेल की एक सुदीर्घ प्रस्तर लिपि खुदी है। काफी प्रयासों के बाद इस 17 पंक्तियों के शिलालेख को पढ़ा जा सकता है। शिलालेख का प्रारंभ अरहंतों तथा सिद्धों को नमस्कार के द्वारा हुआ है। आगे लेख में खारवेल के कुमार काल, विद्या अध्ययन, युवराज पद, मगध विजय, कलिंग जिन की वापसी आदि बातों का वर्णन है। जैन इतिहास की दृष्टि से यह लेख अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त उदयगिरि पर राणी गुफा, छोटा हाथी गुफा, बाजाघर गुफा, अलकापुरी
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* 10, फारेस्ट कालोनी, लाल कोठी, जयपुर (राज.)