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मुखपृष्ठ चित्र परिचय प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य आचार्य मानतुंग (7 वीं श.ई.) ने प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की भक्ति में अढतालीस काव्यों वाले आदिनाथ स्तोत्र की रचना की थी। इस स्तोत्र के प्रथम काव्य में 'भक्तामर' शब्द आने के कारण यह लोक में 'भक्तामर स्तोत्र' के नाम से प्रसिद्ध
1916 में सर सेठ हुकमचन्दजी, रायबहादुर सेठ कस्तूरचन्दजी एवं रायबहादुर सेठ कल्याणमलजी ने प्रमुखता से समाज के सहयोग से दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम की स्थापना की थी। इस आश्रम में स्थित जिनालय में शनैः शनै: अमर ग्रन्थालय के अन्तर्गत 942 पांडुलिपियों का दुर्लभ संकलन विकसित हुआ। इसी संग्रह के सूचीकरण की प्रक्रिया में हमें फुटकर पन्नों के मध्य एक पोस्टकार्ड पर श्री प्यारेलालजी परवार, राधोगढ़ द्वारा लिखित 'भक्तामर स्तोत्र' के 48 काव्य प्राप्त हुए। सुन्दर अक्षरों में लिखी यह पांडुलिपि ही मुखपृष्ठ पर अंकित है।
सम्पादक