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________________ सम्पादकीय ( अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) सामयिक सन्दर्भ अर्हत् वचन के गत अंक में हमनें इसी पृष्ठ पर जैन समाज के लिये सर्वाधिक महत्व के कतिपय महत्वपूर्ण अकादमिक/ सर्वेक्षणात्मक कार्यों की चर्चा की थी। यह सभी कार्य व्यापक निवेश तथा परिणाम हेतु लम्बी समयावधि की अपेक्षा के कारण सुस्थापित संस्थाओं द्वारा ही हस्तगत किये जा सकते हैं। वरिष्ठ जैन विद्वान एवं इतिहास में गहन रूचि रखने वाले भाई श्री रामजीत जैन - एडवोकेट, ग्वालियर ने इस सूची में एक कार्य और जोड़ा है वह है - जैन धर्म, दर्शन, इतिहास से सम्बद्ध समस्त शिलालेखों, प्रतिमालेखों, ताम्रपत्रों, यन्त्रों एवं प्रशस्तियों का संकलन। वस्तुत: जैन इतिहास की दृष्टि से यह कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है एवं हम उनके सुझाव (पत्र दि. 15.7.99) के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं तथा आशा करते हैं कि कोई न कोई संगठन इस दायित्व को अवश्य स्वीकारेगा। मेरे उक्त सम्पादकीय नोट पर व्यापक सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई। इस श्रृंखला में दिगम्बर जैन महासमिति के राष्ट्रीय महामंत्री श्री माणिकचन्द जैन पाटनी का पत्र प्रतिनिधि पत्र के रूप में मत - अभिमत स्तम्भ में प्रकाशित किया जा रहा है। नैतिक समर्थन तो महत्वपूर्ण होता ही है लेकिन अब आवश्यकता इस बात की है कि चिन्तन से आगे बढ़कर सकारात्मक कार्य भी प्रारम्भ किया जाये। श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर के आदरणीय श्री हीरालालजी जैन ने त्वरित कार्यवाही करते हुए इन्दौर आकर इस सन्दर्भ में चर्चा की। उनके ट्रस्ट के सहयोग से कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित जैन साहित्य के सूचीकरण की योजना तो चल ही रही थी, भावनगर के इस ट्रस्ट ने समस्त आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराते हुए सम्पूर्ण देश में विकीर्ण पांडलिपियों के सर्वेक्षण तथा मानक प्रारूप में उनके सचीकरण की भावना व्यक्त की। हमनें भी इस कार्य की आवश्यकता, उपादेयता, प्रासंगिकता एवं स्थाई महत्व को ध्यान में रखते हुए कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के परिसर में ही इस योजना का क्रियान्वयन श्रुत पंचमी के पुनीत पर्व पर प्रारम्भ किया। इस प्रकार गत अंक के सम्पादकीय के बिन्दु क्रमांक 4 की भावनाओं की पूर्ति हेतु ठोस प्रयास प्रारम्भ हो गये। बिन्दु क्रमांक 5, जिसके अन्तर्गत पाठ्य पुस्तकों में निहित विसंगतियों का संकलन प्रस्तावित है, के सन्दर्भ में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन - जम्बूद्वीप (हस्तिनापुर) की आख्या से अलग इस विषय पर अविलम्ब एक स्वतंत्र पुस्तक निकालने की प्रेरणा दी। फलस्वरूप दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर ने इस बहु प्रतीक्षित पुस्तिका के प्रकाशन का दायित्व स्वीकार किया। यह पुस्तिका प्रकाशित भी हो चुकी है। अब इस श्रृंखला में और भी विसंगतियों के प्रकाश में आने पर उसे आगामी संस्करणों में सम्मिलित किया जा सकेगा। इस अनुकरणीय पहल हेतु Rew अर्हत् वचन, जुलाई 99
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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