SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवास में हिन्दी विषय के प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। यदि हम उनके 50 वर्षों के साहित्यिक अवदान पर दृष्टिपात करते हैं तो हम पाते हैं कि जीवन के प्रथम 20 वर्ष अध्ययन, तदुपरान्त 20 वर्ष हिन्दी साहित्य एवं संस्कृति की सेवा, अगले 20 वर्ष जैन धर्म, दर्शन, साहित्य, संस्कृति और समाज को समर्पित किये, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि षष्ठिपूर्ति के उपरान्त उन्होंने अपने जीवन को पूर्णत: शाकाहार एवं आचार शुद्धि के अभियान को समर्पित कर दिया है। ऐसे विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, महान साहित्यकार की सेवाओं का समीचीन मूल्यांकन नहीं हो सका है। किसी भी व्यक्ति को वही व्यक्ति ठीक से समझ सकता है जो अधिकाधिक समय उसके सम्पर्क में रहे। उनकी साहित्यिक, सामाजिक यात्रा में अहर्निश सहभागी होने के कारण श्री प्रेमचन्दजी को उन्हें बहुत नजदीक से देखने का अवसर मिला। श्री प्रेमचन्द जैन के सम्पादकत्व में प्रकाशित 2 प्रतियाँ हमारे सम्मुख हैं। डॉ. नेमीचन्द जैन साहित्य - एक अवलोकन के अन्तर्गत 18 बिन्दुओं के माध्यम से अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ उनके द्वारा सृजित पुस्तकों, संपादकीय आलेखों, विशेषांक, पत्राचार पाठ्यक्रम हेतु सृजित इकाइयों का विवेचन किया गया है। बातचीत, कविता, कहानी, समीक्षाएँ, यात्रा विवरणों, पत्रों एवं दैनिक डायरी के शीर्षकों के अन्तर्गत उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श करने का आपने सफल प्रयास किया है। एक भेंट में श्री प्रेमचन्द जैन ने बताया कि इस 400 पृष्ठीय पुस्तक में उनके द्वारा सृजित विशाल सम्पदा के 1/5 भाग का ही अवलोकन हो पाया द्वितीय कृति, डॉ. नेमीचन्द जैन - व्यक्तित्व और कृतित्व जैन समाज एवं हिन्दी साहित्य के लिये एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वस्तुत: यह कृति अलग - अलग दृष्टियों से डॉ. नेमीचन्दजी को जानने और समझने के लिये अत्यन्त प्रासंगिक है। इसमें डॉ. नेमीचन्दजी पर जिन 34 लेखकों के आलेख प्रकाशित हुए हैं उनमें उनके सगे संबंधी तो हैं ही, सर्वश्री सुरेश सरल, कन्हैयालाल सेठिया, डॉ. जयकुमार जलज, डॉ. सरोजकुमार, डॉ. अनिलकुमार जैन, डॉ. जे. के. संघवी जैसे प्रतिष्ठित हस्ताक्षर भी सम्मिलित हैं। पुस्तक के उत्तरार्द्ध में डॉ. नेमीचन्द जैन कृतित्व के बहुचर्चित अंशों को समाहित कर श्री प्रेमचन्द जैन ने अपने सम्पादकीय कौशल का सक्षम प्रयोग किया है। मुझे विश्वास है कि जैन धर्म, दर्शन एवं साहित्य ही नहीं, अपितु पत्रकारिता और हिन्दी भाषा के प्रति अभिरूचि रखने वाला प्रत्येक पाठक इन दो कृतियों को अवश्य ही पढ़ेगा। पुस्तक प्रत्येक पुस्तकालय हेतु अपरिहार्य है। 400 पृष्ठीय पुस्तक का मूल्य मात्र 100.00 रुपये रखा जाना अत्यन्त उचित है। मुद्रण भी आकर्षक एवं निर्दोष है। 'हम अपने रोजमर्रा की जिन्दगी से करूणा को जिस तरह विदा कर रहे हैं और बर्बरता की अगवानी कर रहे हैं उसे देखते तय है कि हिंसा का दौर और तेज होगा। कुछ राजनीतिज्ञों का इशारा है कि यदि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में हमनें अहिंसा की जगह हिंसा को अपनाया, या उसे बढ़ावा दिया तो इसके बड़े बदकिस्मत नतीजे होंगे। प्रजातन्त्र की स्थापना या उसे शक्तिशाली बनाने के इन महत्वपूर्ण क्षणों में यदि हमने हिंसा - अहिंसा के विवेक का ध्यान नहीं रखा तो हमारे हाथ से मानवता की वह पूँजी खिसक जायेगी जिसे हमनें शताब्दियों की तपस्या और साधना के बाद अर्जित किया है।' ___डॉ. नेमीचन्द जैन सम्पादकीय - शाकाहार क्रान्ति, मई - जून 89 66 अर्हत् वचन, जुलाई 99
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy