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________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 11, अंक - 3, जुलाई 99, 43 - 47 जैन भूगोल : वैज्ञानिक सन्दर्भ - लालचन्द्र जैन 'राकेश' * वर्तमान युग विज्ञान का युग है। आज चतुर्दिक विज्ञान की विजय दुन्दुभी निनादित हो रही है। मानव जीवन का कोई भी पहल ऐसा नहीं जिसे वैज्ञानिक आविष्कारों ने प्रभावित न किया हो। फलस्वरूप आज का तथाकथित शिक्षित वर्ग विज्ञान के गुणगान करता हआ नहीं अघाता। बात यहीं तक समाप्त नहीं होती, कुछ विज्ञानान्ध जनों का धर्म के प्रति रूझान दिनों - दिन कम होता जा रहा है। वे धर्म के प्रति शंकालु होकर उसे अन्धविश्वास के नाम से सम्बोधित करने लगे हैं। अत: धार्मिक सिद्धान्तों में निहित वैज्ञानिक पक्ष को उजागर / उद्घाटित कर उन्हें जनमानस तक सम्प्रेषित करने की आज महती आवश्यकता है ताकि सभी जन सही समझ प्राप्त कर अपनी विकृत / भ्रमित मानसिकता से मुक्त हों, धार्मिक सिद्धान्तों की वैज्ञानिक गूढता से परिचित हो धर्म के प्रति श्रद्धावान हो सके। जैन धर्म पूर्णत: वैज्ञानिक धर्म है। जैन धर्म के प्रवर्तक / उद्घोषक तीर्थंकर और उनके उत्तरवर्ती आचार्य सुपर साइंटिस्ट थे। वे आत्मा की तह में जीने वाले तथा वस्तु तत्व के सूक्ष्मतम दृष्टा थे। वे अपने युग के पारंगत विचारक, परम आध्यात्मिक साधक एवं तल स्पर्शी गंभीर चिन्तक थे। उनकी सूक्ष्म वैज्ञानिक दृष्टि अन्तस् में प्रतिबिम्बित वस्तु स्वभाव की निर्मलता को समग्रता के साथ ग्रहण करने में पूर्ण सक्षम थी। इसलिये उनके विचार / सिद्धान्त स्पष्ट और असंदिग्ध हैं। आत्मा ही उनकी प्रयोगशाला थी। अन्त:करण के दिव्य चक्षुओं द्वारा उन्होंने जो प्रत्यक्ष अवलोकन किया वही उनकी दिव्यध्वनि द्वारा यथातथ्य उद्घोषित हुआ। यह विस्मयकारी सत्य है कि आज से हजारों-हजारों वर्ष पर्व जैन धर्म के तीर्थंकरों/ आचार्यों ने आत्मा की प्रयोगशाला में बैठकर जिन तथ्यों की उद्घोषणा की थी वे आज भी विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरते हैं अथवा यों कहा जाये कि वैज्ञानिक उन्हीं तथ्यों को उजागर कर रहे हैं जिन्हें हमारे आचार्यों ने पूर्व में उद्घाटित किया था। इसमें वैज्ञानिकों का अपना कुछ भी नया नहीं है। यह कहना अत्युक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आज का विज्ञान तत्वों की उस सूक्ष्मता तक अद्यावधि नहीं पहँच पाया है जिसे अध्यात्म विज्ञान ने हजारों वर्ष पूर्व उदघाटित किया था। कारण यह है कि विज्ञान की पहँच पदार्थों की इन्द्रियगोचर तथा यंत्रगोचर सूक्ष्मता तक है जबकि अध्यात्म अतीन्द्रिय विज्ञान है। ऋषि / मुनि आत्मा की तह में जीने वाले होते हैं अत: वे सूक्ष्मतम रहस्यों को प्रकट करने में सफल हुए। इस लेख में जैन भूगोल से सम्बन्धित कतिपय सिद्धान्तों को आज के वैज्ञानिक सन्दर्भ में संजोया गया है तथा यह निष्कर्ष रहा कि आज विज्ञान उन्हीं तथ्यों को थोड़े बहुत अन्तर से प्रतिपादित कर रहा है जिसे तीर्थंकरों, आचार्यों ने हजारों वर्ष पूर्व घोषित कर दिया था। * सेवानिवृत्त प्राचार्य, नेहरू चौक, गली नं. 4, गंजबासोदा, जिला विदिशा (म.प्र.)
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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