SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (अ) काल अस्तिकाय नहीं है ___काल एक प्रदेशी होने से अस्तिकाय नहीं है, इसलिए काल द्रव्य रूप में तो स्वीकार्य है किन्तु वह शेष द्रव्यों से भिन्न अनस्तिकाय माना जाता है। द्रव्यसंग्रह में अस्तिकाय का लक्षण करते हुए लिखा है 'संति जदो तेणेदे अत्थीति भणंति जिणवराजम्हा। काया इव बहदेसा तम्हा काया य अस्थिकाया यः।।24।। भावार्थ यह है कि जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश ये पांच द्रव्य अस्तिकाय हैं क्योंकि ये काय के समान बहादेशी हैं। अत: काल को एक प्रदेशी होने से अनस्तिकाय द्रव्य कहा। दिगम्बर और श्वेताम्बर परंपरा इस विषय में तो एक मत है ही कि 'काल' अस्तिकाय नहीं है। (ब) काल संबंधी मतभेद काल की वास्तविकता के विषय में दिगम्बर परंपरा और श्वेताम्बर परंपरा में परस्पर मतभेद है। दिगम्बर परंपरा के तत्वार्थसत्र के पांचवे अध्याय में सत्र संख्या 3 है 'कालश्च'2 जिसका अर्थ होता है 'काल भी द्रव्य है' जबकि श्वे. परंपरा में इसी स्थान पर 'कालश्चेत्येके पाठ मिलता है अत: वे काल को एक मत से द्रव्य स्वीकार नहीं करते। इसके स्थान पर वहां 'औपचारिक द्रव्य' की संज्ञा से अभिहीत किया जाता है। 'श्वेतांबर परंपरा में काल का स्वरूप यहां आचार्यों ने काल के दो भेद किए हैं - 1 व्यवहारिक काल, 2. नैश्चयिक काल। (1) व्यवहारिक काल ___व्यवहारिक काल गणनात्मक है। काल के सूक्ष्मतम अंश समय से लेकर पुद्गल परावर्तन तक के अनेकमान व्यवहारिक काल के ही भेद हैं। इनमें घड़ी, मुहुर्त, अहोरात्र, मास, वर्ष अथवा सैकिण्ड, मिनिट, घण्टा आदि के भेद भी समाविष्ट है। सूर्य चन्द्र की गति के आधार पर इनका माप किया जा सकता है। किन्तु विश्व के प्रत्येक स्थान पर सूर्यचन्द्र की गति नहीं होती, एक मर्यादित क्षेत्र को छोड़कर शेष स्थानों में जहां ये आकाशीय पिण्ड अवस्थित हैं, वहां दिन, रात्रि आदि कालमान नहीं होते। इसलिये यह माना गया है कि व्यवहारिक काल केवल 'समय क्षेत्र' तक सीमित है।' (2) नैश्चयिक काल नैश्चयिक काल अन्य द्रव्यों में परिवर्तना का हेतु है। भगवती सूत्र में गौतम भगवान महावीर से प्रश्न पूछते हैं - 'किमयंभन्ते। कालोति पव्युचइ? गोयमा जीवा चेव अजीवा चेव।' हे भगवान! काल किसको कहते हैं। हे गौतम! जीव को भी और अजीव को भी। भावार्थ यह है कि जीव, पुद्गल आदि द्रव्यों में प्रतिसमय जो परिणमन होता - पर्याय बदलती रहती है, वह नैश्चयिक काल के निमित्त से है। दूसरे शब्दों में काल को जीव और अजीव की पर्याय माना गया है। जो जिस द्रव्य की पर्याय है वह उस द्रव्य 24 अर्हत् वचन, जुलाई 99
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy