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________________ मुखपृष्ठ चित्र परिचय जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की कृषि व्यवस्था, समाज व्यवस्था, राज्य व्यवस्था एवं पर्यावरण संरक्षण विषयक शिक्षाओं के जन-जन में प्रचार एवं जैन धर्म की प्राचीनता के प्रचार-प्रसार हेतु परम पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर के अन्तर्गत गठित भगवान ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार समिति ने ऐतिहासिक लाल किला मैदान से 22 मार्च 1998 को श्रीविहार का शुभारम्भ कराया है। भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयीजी ने 9 अप्रैल 1998 को अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त जैसे सार्वभौम सिद्धान्तों एवं राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रचार के उद्देश्य से देश भ्रमण हेतु इसका प्रवर्तन किया है। प्रवर्तन के अवसर पर प्रधानमंत्री पूज्य माताजी से चर्चारत इस रथ के प्रवर्तन के समय अपने शुभाशीष में पूज्य माताजी ने कहा कि 'युग की आदि में भगवान ऋषभदेव ने जब तपश्चर्या करके केवलज्ञान प्राप्त किया तब इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने दिव्य समवसरण सभा की रचना कर दी। भगवान ने दिव्य धर्मामृत का उपदेश दिया। जब भगवान के समवसरण का श्रीविहार हुआ, उस समय कुबेर ने सबको मुंहमांगा धन बांटा एवं रत्नों की मोटी - मोटी धारा बरसाई। तब मनुष्यों ने तो क्या, पशुओं ने भी बैरभाव को त्याग कर परस्पर मैत्री भाव को धारण किया। जैसे तीनों लोकों में सबसे ऊँचा सुमेरू पर्वत है वैसे ही तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ समवसरण है और सब धर्मों में सर्वश्रेष्ठ अहिंसामयी धर्म है। भगवान का यह श्रीविहार सारे जगत के लिये, सब शासकों के लिये, सारी जनता के लिये मंगलमयी हो, यही मेरी भावना है एवं यही मेरा सभी के लिये मंगल आशीर्वाद है।' दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान में जैन धर्म की प्राचीनता, प्रासंगिकता, जैन जीवन पद्धति की उपादेयता का जन-जन में उद्घोष करने के उपरान्त यह रथ 5 अप्रैल 1999 को नीमच नगर से मध्यप्रदेश में प्रवेश कर चुका है। इसके माध्यम से जैन संस्कृति की महती प्रभावना हो रही है। ।
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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