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________________ vedercrenenturonennnnnnnnnnnnnnnnnn २८४ प्रभुद्धन. ता.१-७-33 हिन्दी विभाग. साहित्यरत्न-दरबारीलालजी-न्यायतीर्थ का ही सांप्रदायिक ऐक्य करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण विवेचन हुवा था । संघ के सेक्रेटरी श्रीयुत् माणिकलालजी भटेवराने संघ को श्री महाराष्ट्र जैन युवक संघ .... आगामी वर्ष के कार्य की रूपरेखा बतलाई थी। इसी वक्त और मंचरनिवासी श्रीमान राजमलजी साहेव समदडियाजी ने . सामाजिक आन्दोलन. रु.१५ की और श्रीमान जुगराजजी साहेब घोडनदीवाले ने हमारी जैन जातिको पुनर्सङ्गठित हुए आज लगभग रु. ५ ज ग रु. ५ की संघ को मदत दी है। २४५८ वर्ष व्यतीत हो गये। भगवान् महावीर ने किस -मोसर-पत्रिका प्रचार और उसका प्रभावप्रकार हमारे समाज को संगठित किया, उसको अहिंसा का संघ ने मोसर (प्रेत-भोज) के बारे में हरएक दृष्टि से पाठ पढ़ाया तथा अपने दिव्य उपदेशोंद्वारा हमें पतितावस्था पत्रिकाए छपवाई हैं, और इस धर्मविरुद्ध कुप्रथा को नष्ट से उबारा ये बातें न्यूनाधिकरूपमें सबको विदित है। करने के लिए महाराष्ट्र में बृहद् आन्दोलन चलाया है। इस किन्तु आज उसी वीर के अनुगामियों में फूट और आन्दोलन से श्री नासिक जिल्हा ओसवाल सभा के अधिकलह की भेरी बज रही है। श्वेताम्बर और दिगम्बर, बाइस वेशन में ४७ वर्ष से कम उमर की व्यक्ति का मोसर न करने टोला और तेरा पन्थी इत्यादि के संघर्ष की ओट में जैन का प्रस्ताव पास हुआ है, और इस मोसर के प्रथा को जाति एक गहन आवर्तकी और अग्रसर हो रही है कि यदि निदनाय ठराया हो । इस खडखडाती हुई समाज का हाथ पकड कर कूल निकट नासिक जिल्हे में येवलें गांव में तारीख १७-१८ जून नहीं पहुँचा दी जायगी तो संसार में जैन जाति का नाम १९३३ को कै. देविचंदजी साहाब तातेड जिन को उमर निशान केवल इतिहास के पृष्टों का ही विषय रह जायगा। ७६-८० वर्ष से जादा थी उनका मोसर हुवा है। किन्तु देश के नवयुवकों का ध्यान इस और अधिक आकर्षितः । मृत्यु-भोज के बारे में कोई शर्त उम्र की नहीं होनी चाहिये होता है, अतः उनके हृदय में सत्यानाशी फट और रूढियों कि इतनी उम्र वाले का भोज न हो और इतनी उम्र वाले और समाज की शक्ति का नाश करने वाली करीतियों के पति का हो, क्यों कि है तो हर हालत में मध्य समय का खाना घोर विरोधी भाव पाये जाते हैं। ही। सो इस लिये इस समय पर संघ ने मृत्यु-भोज विषयक ऐसी अवस्था को देख कर नासिक के जैन नवयुवकों ने । पत्रिकाओंका जोर से प्रचार किया। उसके प्रभाव से बहुत जाति के पारस्परिक वैमनस्य के विरोध के लिए, समाज के स से सजनोंने उपरोक्त मृत्यु-भोज में भाग नहीं लिया था। यथेष्ट उन्नति के लिए, नवयुवकों में समाज और देश की सेवा इसी ही तरह से यदि मृत्यु-भोज में भाग न लेनेवालों की के भाव भरने के लिए तारीख १४ मइ १९३३ को नासिक बहु संख्या हो जावे तो ऐसी कुप्रथा बन्द होने में बहुत देरी न लगेगी। में श्री महाराष्ट्र जैन युवक संघ को जन्म दिया. यह संध मृत्यु-भोज में भाग न लेने वालों की बहु संख्या करके तिनों सम्प्रदायों के लिये तथा समस्त महाराष्ट्र के लिये है। अपनी संगठन शक्तिद्वारा ऐसे घृणित तथा नीच प्रथा को - आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुसार इसका सर्वथा बन्द कर देने के लिए संघ ने प्रतिज्ञा-पत्रिका छपवा मुख्य उद्देश सामाजिक कुरीतियों का नाश, जैन जाति का कर प्रतिज्ञा-पत्रिकाऔं पर हस्ताक्षर कराने का काम बडे संगठन और समाज सेवा है। संघ अपने समाज में प्रचलित जोर में चलाया है। कुरीतियों का नाश करने का प्रयत्न करता है, जैसे ओसर अन्त में हम समाज के प्रत्येक नवयुवक से प्रार्थना मोसर, बालविवाह वृद्धविवाह इत्यादि का घोर विरोध करना. ऐसे कार्यों में संघ ने आज्ञातीत सफलता भी प्राप्त की हैं। १ - करते है कि वह अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार इस युवकों में जागृति फैलाने के उद्देश से संघ ने समय समय पर संघ के हरएक कार्य में सहयोग दे-संस्थाओं के कार्यकर्तागण समाज के नेताओं और विद्वानोंद्वारा भाषण दिए जाने का अपनी लेखनो से, पत्रकार अपने पत्रों में इस विषय पर चर्चा प्रयत्न किया हैं। करके तथा जनता अपना सहयोग और शुभाशीष दे। हमे ... संघ के अध्यक्ष श्रीमान् शेठ राजमलजी लखीचंदजी पूर्ण आशा है कि महाराष्ट्र का हरएक जैन व्यक्ति इस ललवाणीजी का 'जैन युवक' इस विषय पर तारीख २४ संघ का सभासद बने और संघ के कार्य में सहयोग दे। मइ १९३३ को भाषण हुवा। उपरोक्त समय पर श्रीमान् -माणिकलाल भटेवरा-मंत्री. આ પત્ર મનસુખલાલ હીરાલાલ લાલને જૈન ભાસ્કરોદય પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ નં. ૩ માં છાપ્યું છે. અને ગોકલદાસ મગનલાલ શાહે જૈન યુવક સંઘમાટે ૨૬-૩૦, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ ૩, માંથી પ્રગટ કર્યું છે.
SR No.525918
Book TitlePrabuddha Jivan - Prabuddha Jain 1933 Year 02 Ank 11 to 45 - Ank 39 40 and 41 is not available
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakant V Sutariya
PublisherMumbai Jain Yuvak Sangh
Publication Year1933
Total Pages268
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Prabuddha Jivan, & India
File Size30 MB
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