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AUDIBIDEARED
પ્રબુદ્ધ જૈન
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મતે હુએ ઝગડાંકા રોકનેકી જરૂરત.
लेखक - संघसेवक हेतमुनिजी.
प्रायः अंतिम पञ्चीश सालसे जैनधर्ममें क्या प्रवृत्तियाँ हो रहो हूं, इससे जैनसमाज अच्छी तरह वाकिफ है, यह तो स्पष्ट है कि दिन प्रतिदिन ईर्षा, द्वेष और मत्सर बुद्धिको पा रहे हैं और जिसधर्मकी प्रभावना करनेके लिये हम कटिबद्ध हुए हैं और उसी धर्मकी अवनति हमारेही हाथोंसे हो रही है। यह क्या सख्त अफसोसकी बात नहि है ?
मे श्री संघसें, उसमें भी जैनधर्मके आचार्योंको, उपाध्याय महाराजाओंको, पंन्यासपद धारकोंको तथा गणिपद भूषित मुनियोंको तथा सामान्य साधुओं को भी विनंति करूंगा कि आपही जैनधर्मके सच्च उद्धारक हो और आप लोगोकोहा इसमें हिस्सा न लेना चाहिए। वर्तमानके दीक्षा प्रकरणसें समाज में कितना बखेडा हो रहा है और उतनेमेंही एक विषयका निपटार न करते हुए प्रतिदिन नये बखेडे समाजमें पैदा कर दिये जाते हैं जिसमें भद्रप्राणीयोंकी श्रद्धाको बढी हानि पहुँचती है।
मैं स्पष्टतयासे कहूँगा कि ऐसे झगडोंसे जैनधर्मके तत्वज्ञानको, जैनधर्मधारकजीयोंको कुछभी लाभ नहि होता किन्तु जैनधर्मकी जगतमें हँसी और अवहेलना होती है तथा उसकी प्रमाणिकता पर कुठाराघात होता है.
मैं तो अपने जनधर्मके शुभचिंतकोको अर्ज करता हूँ जैसे हो सके वसे जल्दी इन झोंका पिटार करदे अगर भावी कालमें भी ऐसी स्थिति रही तो जान धर्मीयोंको और उसमें भी साधुसंस्थाको बहुत सहन करना पडेगा ।
जिनके पास श्री महावीर प्रभुके उपदेश रत्नोंका खजाना भरा पडा है, जिनके पास अहिंसाका अप्रतिम शस्त्र है, जिनके पास अद्वितीय ज्ञानका स्रोत वह रहा हैं वैसे अगर कायरों के तरह आपस आपस में लडने बैठे वहतो सख्त लज्जाकी बात है, उनका तो अब समयकी प्रतीक्षा न करते हुंबे जल्दि ही समाधान कर लेना चाहिए, समाधानमेंही, संपमेही सबकी सुख और शान्ति है.
मुझे फिर अफसोस और रंजके साथ कहना पढता है कि वर्तमानमें जैन धर्मके कितनेक अखबारांमें ऐसे लेख आते है जो कि जनधर्मको हानि पहुँचानेवाले है । उनको व लेख कतई न छोपने चाहिए।
दूसरी आरसे दिगम्बरलोग तीर्थोके विषयमें मन चाहा उत्पात करते है और स्थानकवासीभी आगमादि पद थाको न मानते हुए अपनी उलटी हो गंगावते हैं, तो इस समय में आपसमें न झगडते हुए अगर ऐक्य कर लीया जाय तोही कल्याण है वरन अवनति ही है.
ता० १७-१२-३२
रहा है, सज्जनो ! हा! इति खेद ! पंचमकाल अवश्य है मगर उसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे परही गिरा नजर आता है.
और यदि सबसे प्रथम साधुलेग भी अपना ऐक्य कर लेतो भी अच्छा है. पीछे श्रावक वर्ग अपने आप रास्ते पर आजायेंगा. दुनिया में कहावत है कि 'रावणका राज्य बनिया न होनेसे गया अगर यह कहावत वर्तमान में विपरितार्थको चरितार्थ कर रहा है, वनियोंका राज्यशासन उन्हीं के हाथोंसे नष्ट हो
अन्तमें जैनशासनके सुनियको जो कि जैन धर्मक सच्चे उपदेशक, सुधार अथवा समयधर्मवाले है उनकोही समज जाना चाहिए, जिससे शासनमेंसे क्लेश-विपवाद नष्ट हो जाय तथा परथमं जाते हुए जीव स्वधर्ममें जीवन्त रहे और जनधर्मके उदार सिद्धान्तोकी तथा उदार विचारोंकी तथा उदार आचारोंक छाप जगत्पर अमर हो जाय। इति ओ३म् शान्तिः
श्री कोरटाजतिीर्थ में जीवहिंसा यह तीर्थ २५०० वर्ष पूर्वका राणा हे आर शिवगंज (मारवाड) से ४ मलके फासलेपर है, हाल यह तीथे पीडितावस्था में पड रहा है. यहां जेनोंकी बस्ती मात्र २५ घरको है, बहुतसी वस्ती राजपूतों की है. यह गाम में मुखी गांवके ठाकोर है, इस मंदिरके समिपपर्ति वहांके ठाकुरकी कूलदेवीका स्थान होनेसें प्रतिवर्ष दशहरा के तहेवार सैंकडो जीवोकी कल होती हैं मगर अफसोसकी बात यह है कि चार मलके फासलेपर शिवगंज में ६०० ओशवाल पोरवाल भाईंयाँका घर होने परभी हिंसा बन्द नहि करा सकते ? में दीलगरीके साथ कहना पडता है कि आडंबरी उत्सवोंकी पीछे लाखो रुपये खरचते हैं किन्तु चारमैल नजीकके एक पूराणा तीर्थ में होती हिंसा बन्द नहि करा सकते ? यह बहुत शरम जनक है. यह हिंसा बन्द करवानेके लिये ग्राम्यजनों मिलकर वहांका ठाकुरसे विनंति करों, यदि न माने तो सत्याग्रह करो. और में बम्बई जीवदया मंडली और अहमदाबाद जीवदया मंडलसे प्रार्थना करता हूं कि अपनी साथ देकर दरवर्ष होती सैंकडोकी संख्या में हिंसा बन्द करावे और महत्पुण्योपार्जन करें. - मी. भोगीलाल पेथापुरी.
વિદ્વાનાને ખુશ ખબર.
( न्यायन अपूर्वग्रंथ )
જેની લાંબા સમયથી રાહ જોવાઇ રહી હતી અને જે કલકત્તા, મુંબઇ અને બીજી અનેક યુનિવર્સિટીના ગ્રેજ્યુએટના अर्सभ' न्याय प्रथमाभां ने न्युरेशन मोई मां वमन थये छे, ते न्यायनो व्यद्वितीय ग्रंथ "प्रमाणन यत्तत्वालोक" (प्रभाणुनयतत्त्वाला द्वार) ४ नेने न्यायशास्त्रमा धुरधर विद्वान् वाहि हेरियो मनाये छे. ते सर ने सुंदर अयोधिनी नामनी તદ્દન નવી અપ્રસિદ્ધ ટીકા સાથે થોડા સમયમાં બહાર પડશે. આ ગ્રંથને ન્યાય-કાવ્યતીર્થ, તર્કાલકાર મુનિરાજશ્નો હિમાંશુવિજયજીએ એડીટ કરેલ છે અને જેમાં નેટ, પા ંતર, અનુ
शिष्टा आहे यायी प्रस्तावनामा अथर भने छैन ન્યાયના વિષયમાં સારા પ્રકાશ પાડયેા છે. અઠ્ઠાવીશ રતલી સુંદર કાગળમાં, ક્રાઉન સોપે સાઇઝમાં લગભગ સવાસો પૃષ્ઠના हणार अथनी हिम्मत मात्र । ०-१४-० माना है. પેŽજ અલગ,
મળવાનું ઠેકાણું:— मेसर्स मे. भ, भेन्ड हैं . ) श्रीविल्यम सूरिश्रथभागा भु. पालीताणा. ધ્યેય સરાકા (श्रीयावाड) छैन ( भागना)
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