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________________ प्रभुवन ०२०-4-33 हिन्दी विभाग.. अपनी समाजका पुनरुत्थान कैसे हो? -शेठ अचलसिंहजी. श्री महाराष्ट्र जैन युवक संघकी नासिकर्म (मतांक से चाल.) (२) अपनी समाज में एक दो व्यक्तियों को अपना स्थापना. अगुआ अवश्य बनाये रखना चाहिये । जो कोई नई बात ता. १५-५-३३ रवीवार को मेन रोड पर श्रीमान् की जाय वह आपस में प्रेमपूर्वक मिलकर करनी चाहिये । शेठ पृथ्वीराजजी निमाणी के हाथोंसें श्री महाराष्ट्र जैन युवक- अगर एक दूसरे की शिकायत करता है तो या तो स्वरु संप की स्थापना हुद, स्थापनेके समय तिनों सम्प्रदाय के कर या किसी योग्य मनुष्य को बिच में डालकर मामलेसभ्य उपस्थित थे. ॐ यहां पर ता. २०-२१-२२ मइ, को नासिक जिल्हा .. को या गल्त फहमी को साफ कर लेनी चाहिये, न कि ओसवाल सभा होनेवाली है. इस लिये उसके जोडेसे कार्य- बगैर सोचे जो चाहे सो कह डा या कर डालें। कर्ताओको यह भ्रम हुबा की इससे ओसवाल सभा के कार्य (३० हर एक स्थान पर एक धर्म स्थान होना को धक्का लोगा, क्योंकी ओसवाल सभा और युवक संघक च चाहिये, जहाँ प्रतिदिन, प्रति सलाह अथवा प्रति महीने में बहुतसे कार्यकर्ता एकही है. संघके मुख्य कार्यकर्ता की एक समय तो अवश्य मिलकर धार्मिक संबंधी बातों पर माणिकलालजी भटेवरा, और हेमराजजी चंडालीया ने मोस विचार किया जा सके जिससे धार्मिक उन्नति होती रहे। बाल सभा के प्रचारका कार्य फेर जिल्हेमें किया है. इसलिये (8) व्यक्ति व्यक्ति से गृह बनता है, गृहों से समाज कुछ लोग इस संघके स्थापनाको बिरोधी थे. इस लिये स्था . बनता है, समाजों से देश बनता है। यदि हर व्यक्ति पना के समय श्रीमा न अपने को संगठित कर लेता है तो परिणाम यह होता है मनोहरमलजी गोटी ओर श्रीमान, चुनीलालजी रांका बी. ए. कि समाज आर. समाज सदश आसाना स सगाठत हा में विरोध किया. विरोध करने के लिये श्री. चुनीलालझी रांका जाता है । स्थानीय समाज को अपना संगठन करना चाहिये बी. ए. ने संघके स्थापनोत्सवमें न जाने के लिये व्हॉलेंटिय- और जब तमाम गाँव, कस्वे, तहसील और नगर की समानें रॉको नोटीस दिया था. और छोटे छोटे (व्हॉलेंटियर) वेन्चों संगठित हो जायगी, तब उसका परिणाम यह होगा कि आपका को मारा भी, फिर भी स्थापना के समय सब लोग गये. सम्पूर्ण प्रांत अवश्य संगठित हो जायगा। परंतु स्थामनाका निर्णय होनो पर. श्री. चुनीलालजी रांका कुरोतियाँ बी. ए. उठकर चले गये तथा आ भोडे सभ्योंको खीचनेकी कुरीतियाँ, जो कि बहुत समय से जैन समाज में कोशीस कॉ, परंतु असफल रहें. . .. चली आती हैं,उन्होंने जैन-समाज की जडों को खोखला कर दिया है और यदि यही हालत रही तो एक दिन वह आएगा स्थापना के विरोध के उत्तर में अध्यक्ष महोदय श्री. का महादय आ. जब जैन समाज रुपी वृक्ष बिल्कुल नष्ट हो कर गिर जाएगा। पृथ्वीराजजी निमाणीनें कहां-को यह कोई विरोधी संघ नहीं नह इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश, काल-समयानुहै. किंतु संघ के ओसवाल मई आपके इस अधिवेशनमें पशनम् सार-जो कुरीतियों हैं उनको बिल्कुल निर्मूल कर देना आपको ऐसी मदत देंगे. जिससे आपकी सभा गरीबकि लिये चाहिये। तब ही आप अन्य समाजों की तरह उन्नति कर भी कुछ ठोस काम कर सके तथा दोखायटी प्रस्तावाम समय सकेंगे।मैं समाज का ध्यान निम्न कुरीतियों की ओर पूरी न होजाय. दिलाना चाहता हूँ, जिनको शीघ्र दूर करने को अत्यन्त बाद में सारित्यरत्न दरबारीलालजी न्यायतीर्थ में कहा आवश्यकता है:- [अपूर्ण.] के भोसवाल सभा समाज सुधारक कार्य करे ऐसी इस संध -- की आवश्यकता है. क्योंकी ओसवाल सभा उमटीम इसके बाद कुछ चर्चा हुवा तब विरोधी भाइयोंका समाधान होने पर सर्वानुमत से संघको स्थापना हुइ. ऐसा कर सकती है जितने पर सभा से काम लिया जा सके. जब जातका निर्णय हुबा. . . की संघका कार्यक्षेत्र इससे विशाल है. यह संघ तिनों सम्प्र- मंधके सेटरी श्रीयत माणिकलालजी भटेवराने संघका दायों के लिये तथा समस्त महाराष्ट्र के लिये है. तिनों सम्प्र- उद्देश पढ़कर सुनाये, और संघ की स्थापना हुइ. नासिक दायोंकी हफताकी इस समय कितनी आवश्यकता है इसके जिल्हेकी बहु संख्यांक जैन समाज संघसे परिचित है. और कहने की जरुरत नहाँ है, इत्यादि। उसमें सहानुभूति रखती है." આ પર્વ મનસુખરાજ હીરાલાલ બાલને ન મારફરાદક પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુ થઇ નં. માં પ્યું છે, અને ગાદાસ મગનલાલ શાહે જૈન યુવક સંપર્ક માટે ૨૬-, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ , માંથી પ્રગટ કર્યું છે,
SR No.525798
Book TitlePrabuddha Jivan - Prabuddha Jain 1933 05 Year 02 Ank 27 to 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakant V Sutaria
PublisherMumbai Jain Yuvak Sangh
Publication Year1933
Total Pages34
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Prabuddha Jivan, & India
File Size3 MB
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