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________________ લેહ જિનાલયની ૧૦મી વરniઠ ઉજવણી પ્રસંગે શુભ સંદેશ 52.10 TEE RAY AT ANrlene No. 0011915211/22:19) RAJGIR--803116 Par No. : 06179-517215013 Dist. : NALANDA (BITAR) Ref. No....... Date........................ श्री शरद बखाई, प्रमुख अवं जैन समाज यूरोप के धर्मप्रेमी सदस्यगण । सस्नेह धर्मरवारित ! तीर्थंकर की पंचकल्याळक-भूमि, साधनाभूमि, समवशरणभूमि होने का सौभाग्य पाया और महान् कहलाया यह भारत । भगवान के भक्त भगवान की भूमि तक ही सीमित न रहे, वै धर्मदत बनकर भगवान के संदेशों को अपने साथ लेकर, देश-विदेशों की सीमा पार कर, सब दिशा में, सब और फैले। अपना व्यवसाय, अपना कर्मक्षेत्र, अपनी यशकीर्ति तो फैलाई, साथ-साथ प्रभु का नाम फैलाया । प्रभु के संदेश फैलाये । विदेशों में जब भी में मंदिरों में, धर्म-स्थानों में प्रभु स्मरण करते हु भगवत् चेतना के सम्मुख भक्तजनों को आसान जमा ध्यानस्थ, साधनारत देखती हूँ और देखती हूँ तपोमय धार्मिक जीवन जीते हुॲ, तो प्रसन्नता से हदय वौल पडता है- इन प्रभु भक्तों केहदय खाली नहीं हैं, वे अपने भगवान् को अपने हृदय में विराजमान करके अपने साथ ले आये । परिवार, प्रियजन, भूमि, देश, सब छोडकर अक देश से दूसरे देश आये है। पर, भगवान को छोडकर, धर्म को छोडकर नहीं आये। वर्षों बीत गये, लम्बा समय गुजर गया पर पावन धारा निरन्तर प्रवाहित है। जीवन की यह सबसे बड़ी उपलब्धि हैं। जीवन की इस महान् उपलब्धि रौ अभिभावित हुअ आप सब से मेरी विशिष्ट आत्मीयता जुडी हुई हैं। मुडौं जानकर प्रसन्नता हुई कि - आप जैन समाज, लेस्टर के धर्मप्रिमी भाई-बहन अक वृहद् आयोजन करके अकत्रित हो रहे हैं। में वीरायतन तीर्थभूमि से आपके आयोजन की सफलता के लिअ आशीर्वाद भेज रही है। अपनी प्रसन्नता और आत्मीयता भेज रही है। आप सब अपनी धार्मिक शक्ति अवं आध्यात्मिक ऊर्जा को केन्द्रित करके प्रभु भक्ति का आनन्द लेंगे। प्रभु के विश्वमैत्री, करूणा अवं सत्कर्म के संदेशों के प्रचार के लिओ प्रयत्नशील रहेंगे। प्रभु के आशीर्वाद आपके साथ हैं, अत: प्रभु की भूमि को आप नहीं भूलेंगे। प्रभु के जीवन संदेशों को जीवन का, परिवार का अभिन्न अंग बनायेंगे। आप जीवन के हर क्षेत्रमें, हर मोड़ पर यशरवी रहै। आपके जीवन की और आपके आयोजन की सफलता के लिअ अन्तरमन की हार्दिक शुभाशंसा अर्पित करती हूँ। सनम गुभाभी के साथ आचार्य ગ) શ્રીમદ્ રાજચંદ્ર આધ્યાત્મિક સાધના કેન્દ્ર श्री -- -- -- - -an) 600-348000 (R ichatata) ria २८ २०. 1.6.10८०(401) + शि.y५Ea4नि+ 10 (0.012).521 Hearty congratulations and Best wishes for grand success on the eve of 10 anniversary Celebrations of Jain samaj, Europe. we all at this Centre wish for greater success of the institute in future * With & on Behalf entire kola-Parivar Atmanan लव lain Education International 2010 03., . 19 - THIS SHEwww.jainelibrary.org SATTA
SR No.525531
Book TitleThe Jain 1998 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrit Godhia, Pradip Mehta, Pravin Mehta
PublisherUK Jain Samaj Europe
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, UK_The Jain, & UK
File Size21 MB
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