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प्रतिष्ठा महोत्सव मुहुर्त -- प्रतिष्ठा के लिये शुभ मुहुर्त का होना । उत्तर या पूर्वाभिमुख भी आवश्यक है । अनिवार्य है अन्यथा अनेक प्रकार के विघ्न आते रहते है। गुरु और इस प्रकार जैन समाज में जो प्रतिष्ठा महोत्सव होते है उनकी शुक्र के उदय में ही पंच कल्याणक होते है। वृषभ, सिंह, वृश्चिक, सफलता के लिये क्रियाकाण्ड, आचार्य एवं शुभ मुहुर्त का महत्वपूर्ण कुम्भ आदि स्थिर लग्न, उत्तरायन सूर्य तथा रवि, सोम, बुद्ध, गुरु व
स्थान है। शुक्रवार उत्तम है। रिक्ता तिथि वर्जित है। हवन के लिये वन्हियोग लेखक-- संहितासूरि प्रतिष्ठाचार्य पं. फतहसागर शास्त्री, देखना चाहिये । इसी तरह प्रतिष्ठा मंडप व मन्दिर का उत्तम स्थान हो धानमण्डी, उदयपुर ( राजस्तान ) भारत.
बाल कहानी:
हक की रोटी
(श्रीमती वीणा गुप्त) एक बार एक साधु किसी बड़े राज्य को राजधानी पहुँचा अन्त में वह साधु एक गरीब बुढ़िया की झोंपड़ी पर पहुँचा तो उसने राजा के विषय में बहुत कुछ सुना। नगरी का | और हक की रोटी के लिए अपनी इच्छा प्रकट की। बच्चा-बच्चा राजा को निर्दयी और घमण्डी कहकर पुकारता | "ग्राप पधारिये प्रभ। मेरे बर्तन में दो रोटियां हैं। था। कुछ सोचकर वह साधु राजा के महल की ओर चल | उनमें से एक हक की है, आप कृपा करके उसे ही पड़ा।
स्वीकार करें।" "सुना है आप बहुत बड़े सम्राट हैं महाराज !"
बुढ़िया की श्रद्धा देखकर साधु बहुत ही प्रसन्न हुआ और राजा के पास पहुँचकर साधु ने प्रश्न किया तो उसने | उसके द्वारा दी गई एक रोटी खाकर प्रात्मविभोर हो उठा। अपना सिर गर्व से ऊँचा उठाते हए उत्तर दिया, "पापको
राजा के सेवकों ने तुरन्त महल में जाकर सारी बात कोई शंका है तो मांग कर देखो। हम आपकी हर इच्छा को
विस्तार से कह सुनाई। अब भी राजा 'हक की रोटी' के पूर्ति पलक झपकते ही कर सकते हैं।"
विषय में कुछ नहीं समझ सका तो उसने बुढ़िया को दरबार में "मैं तो साधु हूँ महाराज ' धन-दौलत और कपड़े-जेवरों
उपस्थित किये जाने का आदेश दिया। से तो सदा ही दूर रहता हूँ। हाँ आप मेरी इच्छा ही पूरी
अगले दिन गरीब बुढ़िया राजा के सम्मुख उपस्थित हुई। करना चाहते हैं तो अपने हक की रोटी में से कुछ हिस्सा
| उससे साधु की इच्छा और दी गई रोटी के विषय में पूछा मुझे दे दें।"
गया। तब उसने डरते-डरते कहा, “महाराज ! बात यू है "हक की रोटी से आपका क्या तात्पर्य है ?"
कि मेरे पास कुछ रुई थी। मैं उसे कात रही थी, अभी एक "महाराज! आप हक की रोटी का मतलब ही नहीं हो पूनी मैंने काती थी कि मेरे दीये का तेल समाप्त हो गया। समझते तो फिर मेरी इच्छा कैसे पूरी करेंगे। खैर मैं किसी तभी एक जुलस धीरे-धीरे मेरी झोंपड़ी के सामने से गुजरा। और दरवाजे पर जाकर मांग लूगा।"
लोग अपने हाथों में जलती मशालें लेकर चल रहे थे। उसी साधु ने धीरे से कहा और महल से बाहर निकल गया। | रोशनी में मैंने रुई की दूसरी पूनी कातो। उन्हें बेचकर मुझे उसके जाने के बाद भो राजा अाश्चर्य में पड़ा रहा। इतने | दो रोटियों जितना आटा मिल पाया था। उन्हीं दो में से बड़े राज्य का शासक होते हुए भी वह एक साधु की मांग ही एक पर तो मेरा हक था परन्तु दूसरी पर उन जुलूस वालों का पूरी नहीं कर सका और मांग भी केवल रोटी की। रोटो हक था क्योंकि उनके बिना दूसरी पूनी नहीं कातो जा सकती तो हक को जगह बह लाख दे सकता था परन्तु समस्या तो थी। उस साधु ने हक को रोटो के लिए मांग को थी इसलिए 'हक' शब्द ने खड़ी कर दी थी तभी राजा ने अपने सेवकों को मैंने उसे एक ही रोटो दी।" आदेश दिया कि वे उस साधू का पीछा करें।
बुढ़िया ने विस्तार से बताया तो दरबार में उपस्थित सभी राजा के महल से निकलने के बाद वह साधु एक-एक व्यक्ति प्राश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे। राजा को भी करके मन्त्रियों, अमीरों और बड़े लोगों के घर गया पर सभी अपने पर बहुत ग्लानि हुई। उसके घमण्ड का पहाड़ चूर-चूर जगह 'हक' शब्द ने मामला उलझा दिया। फिर वह साधु हो गया। उसके मन की आँख खुलीं और वह उस गरीब कितने हो घरों में गया परन्तु कहीं से भी उसे हक की रोटी म बुढ़िया के सामने नतमस्तक हो गया। उस दिन के बाद वह हिस्सा नहीं मिल पाया, हर जगह राजा के विशेष सेवक पूरो राजा अपनी प्रजा के दुःख-दर्द में भी सम्मिलित होने लगा सावधानी के साथ उसका पीछा कर रहे थे ।
पर उसकी कोति दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगो ।
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