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श्रुतसागर
फरवरी-२०२० गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जैनदृष्टिए आत्मानुं अनन्त वर्तुल श्रीसर्वज्ञधर्म देशकालादि वडे अपरिछिन्न वर्तुल समान अनन्त छ । मुक्त थवाना असंख्य योगो श्रीजैनदर्शनमां जणाव्या छ। असंख्य योगोमां विश्वना सर्वधर्मोनो सापेक्षिक दृष्टिए समावेश थाय छे। आत्माना सामर्थ्य विशेषरूप असंख्य योगो छ। असंख्य योगोनो ज्ञान-दर्शन अने चारित्रमा समावेश थाय छे। असंख्य योगो वडे आत्माना उपशमादि गुणो प्राप्त करीने मुक्त थवू, एज लक्ष दृष्टिमां अवधारवा योग्य छ। कर्मसहित आत्मा रजोगुण, तमोगुण अने सत्त्वगुणनी अपेक्षाए ब्रह्मा, महादेव अने विष्णु वगेरे नामोथी संबोधित थतो होय तो जैनदृष्टिए तेने पोतानामां सापेक्षपणे एवा ब्रह्मादि पर्यायोने सकर्मचेतनपर्यायो गणीने समावी दे छे। नाभिकमलमां आत्माना आठ रूचक प्रदेश छे ते सिद्धसमान निर्मल छे। शरीरमां व्याप्त थएलो आत्मा ते शरीररूप सृष्टिनी अपेक्षाए समष्टिरूप लेवो तेनो शरीरनी साथे क्षीरनीरवत् संयोग छ । शरीरने पीपलानी उपमा आपवामां आवे अने तेना उदर भागने एक डाळ वा पतनी उपमा आपवामां आवे, तेमां पर सत्त्वगुणी प्रकृतिनी मुख्यतावाळा आत्माने विष्णुनी उपमा आपवामां आवे, तेमांथी नाभिमां अष्टकमल पांखडीवाळू कमल उत्पन्न थयु एम मानवामां आवे, तेमांथी रूचक अष्टप्रदेश वडे सह आत्माथी चितिरूप ब्रह्मा उत्पन्न थया, एम मानवामां आवे, अने तद्दवारा सर्वज्ञेयरूप विश्वनुं ज्ञान जगतमां उत्पन्न थयु एम पौराणिक कल्पनाने घटाडवामां आवे तो जैनज्ञानदृष्टिए अविरोधभावे जैनदर्शनमां तेनो समावेश थाय छे। दर्शनने ब्रह्मानी उपमा आपवामां आवे, ज्ञानने महादेवनी अने चारित्रने विष्णुनी उपमा आपवामां आवे तो ए रीते त्रण गुणरूपी त्रणदेवोनो जैन दृष्टिए आत्मामा समावेश थाय छे । अन्य अपेक्षाए ज्ञानरूप विष्णुमांथी क्षायिकसम्यक्त्वरूप ब्रह्मानो अने तेमांथी चारित्ररूप महादेवनो प्रादुर्भाव युक्ति-युक्त करी घटाडीने तेनो आत्मामा समावेश करवामां आवे तो जैन दृष्टिए ए त्रण गुणोना वर्तुलमां ब्रह्मादि देवोनो अन्तर्भाव थाय छे । ए त्रण गुणोने ब्रह्मादिनी उपमा आपीने एकेकमां अन्यनो अवतार अपेक्षाए मानवामां आवे तो घटी शके छे। श्रुतज्ञानथी दर्शननी प्राप्ति थाय छ। दर्शनथी ज्ञाननो प्रगटभाव संमान्य थाय छ। चारित्रमाथी केवलज्ञान अने दर्शन प्रगट थाय छे । इत्यादि सापेक्ष युक्तिद्वारा घटाडीने आत्मामां ब्रह्मादिनो समावेश करवो। पूरक, रेचक अने कुंभकने योगनी शैलीए ब्रह्मा, महादेव, अने विष्णु कथवामां आवे छे, तेनो योगदृष्टिए जैनदृष्टिए आत्मामा समावेश थाय छ।
क्रमशः धार्मिक गद्य संग्रह भाग - १, पृष्ठ - ६८१-६८२
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