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श्रुतसागर
१. संपादकीय २. गुरुवाणी ३. Awakening ४. माणिभद्र छंद ५. पार्श्वनाथ विनती ६. ऋषभदेव हमची ७. पुद्गलपरावर्त स्तवन ८. स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमां
क्रमिक परिवर्तन ९. प्राचीन पाण्डुलिपियों की
संरक्षण विधि १०. पुस्तक समीक्षा ११. समाचार सार
फरवरी-२०२० अनुक्रम
रामप्रकाश झा आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी ६ Acharya Padmasagarsuri i गणि सुयश-सुजसचंद्रविजयजी साध्वी विनीतयशाश्रीजी हिरेनाबेन अजमेरा डॉ. शीतलबेन शाह
मुनिश्री पुण्यविजयजी
राहुल आर. त्रिवेदी रामप्रकाश झा
साध(असाध)मै आंतरो ज्यू अंब अने बबूल । इनकै मुख अमृत चुवै, उनके मुख हुवै सूल ॥
प्रत क्र. १२८०३२ भावार्थ- सज्जन और दुर्जन पुरुष में यही अन्तर है, जो आम और बबूल में होता है, एक के मुख से अमृत झरता है तो दूसरे के मुख से काँटे चुभते हैं।
* प्राप्तिस्थान* आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
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