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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir February-2020 ॥१४।। हम०... ॥१५।। हम०.. ॥१६॥ हम०.. ॥१७।। हम०... ॥१८।। हम०... ॥१९॥ हम०... SHRUTSAGAR रतन जडित मणमाणिक मोती, मस्तिकी राखडी रोपी। आदितनी परि तेजि झलकइ, सुघड सोनीइ उपारी पंचवर्ण हीरा, गोफणु रे, कुसुममाल सोइ लहिकइ। अबीर गुलाल नइ चूआ चंदन, कस्तूरी अंगि महिकइ रे हाथ पग निरखंता रुडा, सामुद्रिकमा जाण्या। तस अनुभाविइ मति सारु मइ, घोडास्या वखाण्या रे ए सिणगार कहिउ जिन भगति, प्रेमविजय भली युगति । मनमाहि कोइ नरनारि, म करस्यु अवर विचार रे इम छपन कुमारी करी शृंगारा, आखी जिननइ पासि। सूतकर्म क[कि]धु उल्हासिइ, गाइ जिनपद भास रे हवइ सोहमपतिनु आसण हालइ, सुर सहु हलहल चालइ। अवधिन्यान धरी इंद्र ज आवइ, मेरसिखर लेइ जावइ रे करी महोच्छव मातानइ पासिइ, मूकी जाइ उल्हासइ । रिषभ जनमनु नाभि नरेसर, उछव करइ उच्छाय रे योवन वय जव प्रभुजी आव्या, सुरनर के मनि भाय रे। सुनंदा सुमंगला रूपि रुडी, तेसु प्रभु परणाव्या रे पंच विषय सुख भोगवइ रे, देवकुमर सम जाणि । श्री ऋषभदेवनी त्रिभुवनमाहि, सहू मानइ सुरनर आण रे एकसु बेटा दो बेटी रे, रिषभदेव घरि जाया। समय जाणीनइ देव लोका[कां]तिक, उलट अंगि आया रे । निज पुत्र सविनइ जूजूआ रे, दीधा ते सवि देस । वरसीदान देइ करीनइ, लीधु संयम वेस रे च्यार सहस साथिइ वली रे, रिषभ जिन करि विहार । घनघाती प्रभु केवल पाम्या, आव्या सुरनर नारि रे समोसरण तिहा दैव कीधु, रुप्य कनक मणि सार। तिहा बइसी प्रभु कइ वखांण, जोजन वाणि अपार रे ॥२०॥ हमचडी०... ॥२१।। हम०... ॥२२॥ हम०... ॥२३॥ हम०... ॥२४।। हम०... ॥२५॥ हम०... ॥२६।। हम०... For Private and Personal Use Only
SR No.525355
Book TitleShrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2020
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
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