________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
13
॥४२॥
॥४३॥
॥४४॥
॥४५॥
॥४६॥
SHRUTSAGAR
February-2020 आप ही हाकम उ(ऊ)ठ, लोंका लेई सब पूठ। विराजे भंडार आय, कहे लुंका ल्याओ जाय इसो सुणि(णी) चढे जोण९, अब आपा गंजे कोण । तब ही तुरत धाए, सांभेलो हलकलाएं माल(लं)ता जु खूब दोड, पोहचे भंडार ठोड । बोलीया हाकम जब, वाजा बंध करो अब कोसथी प्रासाद दूर, आगलि बजाओ पूर। तिम ही ज विध कीध, हाकम सुजस लीध कोइनो न पाड्यो काम, मरयाद राखी आम। तपगछ गुणधांम, आप राखी जग माम
दूहा मांनमल्ल मेतो तपो, प्रगट्यो धोरी समाज। मर्यादा राखण सधर७३, जिम नृप विक्रम आज देश विदेश प्रसिद्ध छे, ए मर्याद अखंड। भोला थई साहमा अडे, सोभ गमावे बंड७५ तपागछ उन्नत चढी, मोड्या कुमती(ति)-मांन । माणक यख्य सहायथी, वाधे अधिक प्रधान
॥छंद- मोतीदांम ॥ माणिभद्र यख्य नमुं शिर पाय, धरा तपगछ तणो अधिष्ठाय । श्रीहेमविमल्लसूरि वर दीध, तपागछ उन्नत कीध प्रसीध वदन्न वाराह अथाहसरूप, प्रधान प्रबल प्रताप अनूप। धरे हत्थां बीच खडग्ग विशाल, भजे अरिवृंद गयन्न पायाल जपे यख्य नाम लहे सुखधांम, सौभाग्य अपार लहे ठांमोठांम । माणि[क] मग्गवाड विराजधिराज, मांने त्रिहुं लोक आवाज आवाज ॥५२॥ एरावण गज्ज चढे यख्यराय, पलाद पिशाच विदेश पुलाय। अनाथीयां नाथण वीर सधीर, एणी कलियुग्ग निधान अमीर ॥५३॥
॥४७॥
॥४८॥
॥४९॥
॥५०॥
॥५१॥
For Private and Personal Use Only