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श्रुतसागर
फरवरी-२०२० तेह नगरमां तपगछ भरीया, साधु श्रावक गुण के दरीया। वली गछ लुंका श्रावक जरीया', साधु विरला रहे अनुसरीया संवत अढार अठ्युत्तर(१८७८) भायो, लुंकामत को थिवर ज आयो। तद तस श्रावक लोको धायो, सांभेला' निसांण घुरायो तद(दा) तपगछ के श्रावक बोले, देवभंडार से देहरा पोले। ढोल न वाजे इतनी कोले, मुझ मर्याद कही ध्रुव तोले तेह जबाप[जवाब] सुणी चडवडीया', थोकें सब मिलि राउल चढीया। मेहताजीकुं कहे लुंकडीया, तपा अन्याय करे अडवडीया हाकम एक पठायो सिपाई, ल्यायो तपांकुं वेग बुलाई। कहे हाकम तुम क्युं जबराई, वात सही मुझ दाय न आई तपा कहे मर्याद हमारी, ढोल न वाजे चेत्य-दुआरी । भांजत ए उल्लंठ धरारी, पीछे करो दिलचाह तुमारी बोले हाकम सुण बे लोंका, ढोल निसांण लेई नर थोका। ल्यावो थिवरकुं पय देई धोका २, रीत म भंजो थईने वोंका३ वचन न मान्यो लुंके साजन, बाहिर थिवर रह्यो मठ-भाजन । रात गमाई तिहां विन(ण) काजन, चढ्यो दिल क्रोध लुंके सब माहाजन ॥११।।
॥तो छंद अडयाल ॥ {सूर पूर ?} प्रात भये सूर वीर, गाजीया सामंत धीर। मूंछडे खेचंता वाल, हीयडे प्रबल झाल'५ हांक मारे एक एक, फिरंता धरता धेष६ । थोकडां मिल्या सुघट्ट, त्रिबलां धरी प्रगट्ट
॥१३॥ वदे मुह विकराल, काला हीये असराल । लखंत विहंग गृध९, केई बाल केई वृध सोहागण नारी चंग, सांबलो लेई सुरंग। इम नर नारी थोक, लगी घण चित्त-चोक२०
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