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December-2019
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SHRUTSAGAR दूहा – रच्यो अंग विधिना सरस, मोपै कह्यो न जाय । प्रह ऊठीने पेखतां, पातिक दूर पुलाय बहुत मिलापी५ गुण-सबल, अडवडीयां आधार । आस धरी आवै जिके, पावै सुख अपार असन वसन सुवचन अधिक, संतोषी जे सैण। करुणानिधि दरसण कीयां, नित सुख पावै नैण पोरवाडवंसै प्रगट, जसवंत साह सुजाण । जसरंगदे-उरउदधिमै, प्रगट्यो रत्न प्रधान इण कलिजुगमाहे हु(हू)ओ, नरमुखि चढतै नूर। कोई न दीतो(ठो?) केत में, एओ पुरुष पडूर संवत सतरासें वरसें, पेतीसे (१७३५) परसिद्ध । हुकम पाय श्रीपूज्य को, करि(री) दक्षिणदिसि सिद्ध उ(ओ)रंगावादै रह्यो, चोमासो चित्त लाय। श्रावक सर्व राजि(जी) हूआ, आनंद अंग न माय असतखांन तिण अवसरै, पातस्याही दीवांन । ओरंगावादै हू(हू)तो, सपरिवार सुभु(भ) थी(थां)न ज(जु)लफकार(खांन?) अंगज भणी, उपनो जोर अचैन । असतखांन द(दि)लगीर हुइ, कहै इसी पर वैन ? कोइक स्यांणो समझणो, ज्योतिष वैदक जांण। ल्यावो वेगा सहरमै, फिरि करि(री) खबर सुजांण जुलफकां(खां)न की तब ददा(धा?)५२, ले चाकर सुखपाल।
आई चालि(ली) उपासिरे, कहने लगि(गी) सवाल तुरत बुलाए हेतमे, आप निवाब हजूर । चालो वेग सतावसुं, भीमविजै गुणभूर काती सुदि पूनिमदिने, जीतविजै अरु भीम। जाय मिलै निवाबसुं, बुद्धिबल वडा हकीम
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