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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१९ श्री ऋद्धिविमल कृत श्रीशजूंजय महातीर्थ छरी पालित संघयात्रा स्तवन
गजेन्द्र शाह एकाहारी भूमिसंस्तारकारी, पद्भ्यां चारी शुद्ध सम्यक्त्वधारी। यात्राकाले सर्व सचित्तहारी, पुण्यात्मा स्याद् ब्रह्मचारी विवेकी ॥१॥
विद्वानोए भक्तिने मुक्तिनी दूती कही छे। भक्तिनो मार्ग सरळताथी सर्व जीवोने मुक्तिना पंथे चढावी दे छे। तेमां पण तीर्थभक्ति विशेष भावाभिवृद्धिन कारण छे। दूर रहेला तीर्थे चालीने जवा माटेनी तत्परता त्यारे ज प्रगटे, ज्यारे प्रभु प्रत्ये, तीर्थ प्रत्ये अखूट श्रद्धा अने भावना होय । चतुर्विध संघना सान्निध्ये कराती तीर्थयात्रानी तो वात ज निराळी छे।
छ’री पाळवा साथे कराती यात्रा शुद्ध यात्रा गणाय छे। जेना शब्दोना अंते 'री' आवे तेवा ६ शब्दो के जे शुद्ध यात्राना नियमरूप छ। यथा- १) सम्यक्त्वधारी, २) पादचारी, ३) भूमिशयनकारी, ४) सचित्त परिहारी, ५) एकाहारी, ६) ब्रह्मचारी. आ साथे प्रतिक्रमणादि वगेरे पण होय छे, जेना द्वारा साची यात्रानो पुरे-पुरो लाभ उठावी शकाय छे । वर्तमानमां चातुर्मास पूर्ण थतां कार्तिक शुक्ल पूर्णिमाथी शखंजय महातीर्थनी यात्रा प्रारंभ थती होवाथी अनेक स्थळोएथी संघयात्राओनुं प्रस्थान थशे। आ अवसरे अहीं संपादन करेल प्रायः अप्रगट कृति वाचकोने यात्रानी प्रेरणा अने पद्धति समझवामां उपयोगी बनशे। कृति परिचय
कृतिना प्रारंभे कविए संवेगी(मुक्तिना रागी, वैरागी) आत्माने निर्मळ थवा माटे विमलगिरिनी यात्राए जवान आह्वान कर्यु छ। कृतिमां प्रत्येक गाथाना प्रत्येक पदना अंते सूधा संवेगी'नुं संबोधन छंदना अभिन्न अंगरूपे जोडायेलं जोवा मळे छे । आगळ भवना फंद तोडनारा तीर्थाधिपति भगवान आदिनाथ- स्मरण करीने केवी विधि वडे यात्रा करीए तो भवनो लाहो लई शकाय तेनी वात करी छे। तीर्थयात्रामा पळाती छ'रीनुं कविए उदाहरण पूर्वक सुंदर वर्णन कर्यु छे।
प्रथम 'री' संदर्भ कविए तमाम प्रकारना मिथ्यात्वना त्यागनी वात करी छ । जिनेश्वर भगवाननी सेवा, नित्य सद्गुरुने वंदन, जिनवाणी श्रवण, राग-द्वेषी कुदेवनो त्याग, आरंभ-परिग्रहधारी कुगुरुनो त्याग, समकितना आठ आचार निरतिचार पालन करवानी वात करी छ। कविए आ साथे दर्शनाचारना शंका, कांक्षादि ८
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