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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१९
गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी आत्मसाधनामां प्रबळ सहायक दिवस
__ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा कार्तिक शुक्ल पूर्णिमाना दिवसे धर्म विचारोने सहाय मळे, एवं शुभ मानसिक पुद्गलो- तीर्थादि भूमिओमां प्रगटन, समुद्रमां भरतीनी पेठे धर्मना प्रभावे थाय छे, तेथी ते दिवसे आर्य जैनोए धर्मना विचारो अने धर्मनी क्रियाओमां विशेषतः जीवन निर्गमन करवू । पर्वतादिनी गुफाओमां शिलाओ ऊपर पद्मासन वाळीने ध्यान धरतुं । प्रभुनी भक्तिमां तन्मय बनी जq । परभवना आयुष्यनो बंध पण तीर्थना(पर्वतिथिना) दिवसे प्रायः थाय छ। मन्दिरोमां, उपाश्रयोमां, नदीनां कांठे, जंगलना पवित्र प्रदेशमां साधुओए ध्यानारूढ थई जवू । मननी चंचळताने वारीने ध्येय एवा आत्माना स्वरूपमां ऊंडा उतरी जq। जे पवित्र स्थळमां घणा महात्माओए ध्यान धर्यु होय, तेवा स्थानोमां जq अने शांत चित्तथी परमात्मानुं ध्यान धरवु। कोईने ध्यानमां विघ्न करवं नहि। भक्तिना अधिकारीओए पोतानी शुद्धि करवा चित्तनी प्रसन्नता वधती जाय, तेवी रीते देव, गुरु, संघ वगेरेनी भक्तिमां मन, वचन अने कायाथी परिणमएं। पवित्र तीर्थप्रदेशोमां ध्यानीओए ममत्वभावनो त्याग करवा संबंधी संकल्प करवो, पश्चात् अत्रस्थानमा वा अन्य कोई स्थानमा उत्तम ध्यान करवा योग्य कोई शुभ मननी वर्गणाओ होय ते मने सहायकारी थाओ एवो संकल्प करवो।
आत्माने आत्मभावे अनुभवू ऐवी उच्च मारी ध्यानदशा प्रगट थाओ एवो दृढसंकल्प करीने आत्मध्यानमां निमग्न थइ जq । सेवाभक्तिना अधिकारी रुचिवंत जीवोए देव गुरु अने धर्मनी विशेषतः आराधना करवी। उपवास, जप, ध्यान, पूजा, भक्ति, भजन, गुरुसेवा, शीयलभाव आदि वडे पोताना आत्माना गुणो उपासवा हर्षोल्लासथी तत्पर थइ जवू ।
सं. १९६९ ना कार्तिक शुक्ल १५ धार्मिक गद्य संग्रह भाग.१ पृष्ठ क्र.४७९-४८०
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