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श्रुतसागर
जुलाई-२०१९
गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी योगनिष्ठ प.पू. आचार्य श्रीबुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा.ना पत्रोमां
झलकतो आध्यात्मिक भाव चातुर्मासनो संदेश
मु. पेथापुर. ले. बुद्धिसागर. श्री महेसाणा. तत्र. वैराग्यादि गुणालंकृत. मुनि. जीतसागरजी योग अनुवंदता विशेष. पत्र वांची समाचार जाण्या। श्री रंगसागरजी अने भक्तिसागरजी वगेरे मळी चातुर्मासमां धर्म गोष्ठीमां जीवन गाळशो। जैनोनी अने जैनधर्मनी प्रगतिना जे जे उपायो जणाय तेनो निर्भयपणे सचोट उपदेश देवो। धार्मिक ज्ञानना प्रचार माटे जे थाय ते करवं, अने व्यावहारिक केळवणीनी साथे धार्मिक केळवणी मळे एवा प्रयत्नो जारी राखवा उपदेश देवो। जैनकोम व्यापारी छे, लक्ष्मी पुत्रोमां प्रायःअज्ञता रहे छे तेओने सत्य मार्गो दर्शाववामां खामी राखवी नहीं। जैनोनी लक्ष्मीनो सदुपयोग थाय तेम उपदेश देवो. स्वाध्यायमां, ध्यानमां अप्रमत्त रहेQ । आगमोनू, ग्रन्थोनुं वांचनमनन करवं. शरीर बळनो क्षय न थाय तेवी रीते दरेक प्रवृत्ति करवी। सारांश के शरीर नरम न थाय तेवी रीते प्रवृत्ति करवी। श्री रंगसागरजीनुं मन आनंदमां रहे तेम समयज्ञ थइ प्रवर्तवू के जेथी भविष्यमां धर्म्यप्रवृत्तिमां तेओ सहायकारी बने। धर्मसाधन करशो। धर्मकार्य लखशो। ॐ ३ अर्हम्. शान्तिः २ सं. १९७१ श्रा. सुदि.१
मु. माणसाथी ले. - मु. पादरा मध्ये शा. मो. ही. अत्र सहेजे चातुर्मास थयुं छे । कंइ धारीने महालाभ देखीने करवामां आव्यु नथी परंतु निवृत्ति गामडामां सारी रहे छे अने अत्र तेवू जाणी रहेवानुं कर्यु छे । आत्मामां आत्माना भाव चोमासाना द्रव्य, क्षेत्र, काल, अने भावथी चोमासु उपशम, क्षयोपशम अने क्षायिकभावे थाय एम उपयोग भावे इच्छु छु. बाह्यनुं निमित्त चोमासु अन्तरना भाव चोमासानी शुद्धिवृद्धि अर्थे थाय तो पुरूषार्थनी सफलता थशे। ते जीवो मुक्त थया-थाय छे अने थशे, के जेओए आत्मामां भावचोमासु कर्यु हतुं तथा जेओ करे छे अने करशे । साध्यदृष्टिए उपयोगनी मुख्यताए बाह्यक्षेत्रनुं चोमासु स्थिरतामां उपकारी थाय छे । एम भावना भावु छु।... ज्यां त्यां चोमासु थाय पण आत्माना गुणो प्रगटाववा एज मुख्य उद्देश छे एवी दशामां रहेवा इच्छु छु ।
धार्मिक गद्य संग्रह भा.१
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