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श्रुतसागर
जुलाई-२०१९
अनुक्रम १. संपादकीय
रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी 3. Awakening
Acharya Padmasagarsuri ४. ज्ञानसागरना तीरे तीरे
डॉ. कुमारपाल देसाई ५. श्री वरकाणापार्श्वनाथ गझल गणि सुयशचंद्रविजयजी ६. १९ दोष काउसग्ग सज्झाय साध्वी काव्यनिधि ७. गुजराती माटे देवनागरी लिपि के
हिन्दी माटे गुजराती लिपि चुनीलाल वर्धमान शाह ८. श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य
श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान
राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्तकुमार १०. समाचार सार
जग आसा जंजीर की गति उलटी कर मोरि। जकड्यो धावत जगत मै रहै छुटै इक ठोरि ॥
प्रत क्र. १५१८७ भावार्थ- यह संसार आशारूपी जंजीर है, जिसकी उल्टी गति होती है, जो इसमें जकड़ जाता है, वह संसार में दौड़ता रहता है और जो इससे मुक्त हो जाता है, वह स्थिर हो जाता है। मा
* प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
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