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श्रुतसागर
जुलाई-२०१९ जेम अव्यक्त बड बड आवाज करे ते।
१९. प्रेक्ष्य दोष- कायोत्सर्ग अनुप्रेक्षा करतो जीव वानरनी जेम होठ हलाव्या करे ते।
अंतिम गाथामां कर्ताए तपागच्छमंडण लक्ष्मीसूरिजी, गुरु मानविजयजी तेमज पोता नाम प्रतापविजय तरीके उल्लेख कर्यो छे। कर्ता परिचय
आ कृतिना कर्ता तपागच्छीय मानविजयजीना शिष्य प्रतापविजयजी छे । तेमनी रचनाओमां अन्य पण घणी कृतिओनो समावेश थाय छ। जेमां १८ दोष पोसह सज्झाय, नेमराजिमती गीत, नेमराजिमती पद अने आदिजिन पद विगेरे छ।
प्रतापविजयजीना गुरु मानविजयजी द्वारा रचित गजसिंहकुमार रासना अनुसारे तेमनी पूर्व परंपरा मळे छे। तदनुसार तपगच्छपति विजयाणंदसूरिजी तत् शिष्य श्रीविजयहीरसूरि तत् शिष्य विजयराजसूरिजी तत् शिष्य उवज्झाय दानविजयजी तत् शिष्य वृद्धिविजयजी तत् शिष्य पंडित कपूरविजयजी तत् शिष्य मानविजयजी थया, तपागच्छनायक विजयलक्ष्मीसूरिजीना राज्यमां गजसिंहकुमार रासनी रचना थयेल होवानो उल्लेख मळे छ। प्रत परिचय
संपदनार्थे प्रस्तुत कृतिनी २ हस्तप्रतोनी नकल आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामांथी मळी हती। जेमांथी सं.१८५२मां लिखित प्रत नं-१००००९मां पत्रांक-१अ थी २अ पर आ कृति छे जे वधु प्राचीन होवाथी तेने आदर्श प्रत तरीके स्वीकारेल छ। अन्य प्रत नं. १८०३११ आधुनिक २०वीं नी प्रत जणाय छे, तेना बे पाठांतरो पण आप्यां छे।
बन्ने प्रतनी लेखनशैली सुंदर, स्पष्ट अने सुवाच्य छ। प्रत नं-१००००९मां कुल ८ पत्रो छ । प्रत्येक पत्रमा १३ थी १४ पंक्तिओ छे, प्रत्येक पंक्तिमा ३२ थी ३८ अक्षरो छ। MO॥ चोपई॥ प्रणमी वीर जिनेसर देव, सुरनर किन्नर सारे सेव । तेह तणे सुपसाई करी, सीधंत वृत्ति अति मनधरी काउसगना उगणिस दोस, ते छंड्ये होए धर्मनो पोष। पहो(हे)लो घोडक दोष ज कह्यो, चरण वक्र राखे ते लह्यो
॥२॥
॥१॥
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