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श्रुतसागर
मई-२०१९ संकेत होवानुं जणाय छ । अन्य कृतिओमां मात्र गुरु सुधी ज नाम प्राप्त थाय छे । बे रासमां मळती विस्तृत परंपरा आ प्रमाणे छे- गच्छाधिपति आचार्य विजयराजसूरि, तेमना शिष्य विजयदानसूरि, तेमना शिष्य राजविमल, तेमना शिष्य मुनिविजय, तेमना शिष्य देवविजय, तेमना शिष्य मानविजय अने तेमना शिष्य दीप्तिविजय छे। तेमनुं अन्य नाम दीपविजय पण छे । गच्छाधिपति आचार्य विजयराजसूरिनी जग्याए मंगलकलश रासमां विजयमानसूरि नाम मळे छे। कयवन्ना रास अने माया परिहार सज्झाय अद्यावधि प्रायः अप्रकाशित कृतिओ छ।
प्रान्ते संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत नकल आपवा बदल श्रीनेमि-विज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानभंडारना आगेवानोनो खूब खूब आभार ।
श्री नारि(रं)गापार्श्वनाथस्तवन
॥१॥
अहँ नमः। ऐं नमः॥
॥ देशी-वींछूआनी॥ समरी सारद सामिनी, मागुं वचनविलास रे लाल। श्रीनारिंगो पासजी, प्रभु गाउं मनि उल्लासि रे लाल श्रीनारिंगो भेटीइ, जिम मनवंछित होय रे लाल । देव सवेमांहिं दीपतो, एह समो नहीं कोय रे लाल। श्रीनारिंगो...॥२॥ त्रंबावतीनयरी-धणी, नीलवरण तनु सार रे लाल। मुझ मन तुझ चाहइ घणुं, जियु चातक जलधार रे लाल। श्रीनारिंगो...।।३।। संवत सत्तर सत्तोत्तरइ(१७०७), प्रतिष्ठा कीधी सुविवेक रे लाल। श्रीविजयराजसूरीश्वरइ, ओच्छव हूआ अनेक रे लाल। श्रीनारिंगो...।।४।। सा. नेमीदास जगि जाणीइ, भाग्यवंत गुणगेहरे लाल। तस ललनां नारिंगदे, सयल सतीमांहिं लीह रे लाल। श्रीनारिंगो...॥५॥ सकल संघनइं पोषइ सदा, आगम उपरि नेह रे लाल । एह समी जगि को नहीं, प्रतिमा भरावी एह रे लाल श्रीनारिंगो... ॥६॥ तुझ महिमा अति वाधीउ, विस्तरो देस विदेस रे लाल। परदेसना घणा संघवी, प्रभु आवइ तव उपेस रे लाल श्रीनारिंगो...॥७॥