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श्रुतसागर
मई-२०१९ तिलके सेठ हुउ ते लोभी, धानना कोठार ज भरीया रे। पापिं तरी नीज पोतुं, नगर ते अवतरीया रे
परिहरि...॥९॥ कंडरीक मुनि लोभि पडीउ, व्रत छंडी हूउ भूपाल रे। सिहकेशरी मुनि लाडु लोभि, भीक्षा भम्यो अकाल रे परिहरि...॥१०॥ लोभि चोर करइ ते चोरी, सहि मर्म प्रहार रे। लोभी कुष्टीनि ने वेश्या, वली भम्यु भरतार रे
परिहरि...॥११॥ लोभि समुद्र उलंघी जावि, सेवि वन गिरवार रे। लोभि लोभ होइ अधिकेरो, नीच तणी करि आस रे परिहरि...॥१२॥ लोभ तणां फल विरुयां दीसि, छंडी भवीजन प्राणी रे। संतोष सु सदा रहु भीना, जिम लहु केवलनाण रे परिहरि...॥१३॥ नीर्लोभी मुनीसर मोटो, वयर नमु करजोडि रे। संतोष सरोवर मांहि झील्यो, कंचण कामणि छोडिरे परिहरि...॥१४॥ एहवु जाणी रुडा प्राणी, संतोषसु चित राखि रे। भवोदधीनो पार ज पामी, मुगति तणां फल चाखो रे परिहरि...॥१५॥ श्रीविजयप्रभूसीरीसर चंदो, तपगछ केरु दीवो रे। नीर्लोभी मुनीसर मोटो, ए ग(गु)रु घणु चिरंजीवो रे परिहरि...॥१६॥
॥ इति श्री च्यार कषाए चतुर्थ लोभ कषाय स्वाध्याय संपूर्ण ||श्रुः || श्रीः॥
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