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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मई-२०१९ जोडणी करी होय एम बनवू मुश्केल छे। कोइ लेखमां वयर, वयरागी जेवी जोडणी मळवा संभव छे, तेज रीते १५-१६ मी सदीमां शुद्ध वैर-वैरागी जोडणी पण मळे छ। लेखकोए जोडणी लखवामां एवी अनियमितता चलाव्या करी छे के ते उपरथी तत्समयनो वास्तविक उच्चार पकडीने तेने अनुरूप कोइ नियम शब्दोनां माध्यमिक स्वरूपो माटे स्वीकारी लेवो ए युक्त लागतुं नथी। इ नो य, य नो इ, ऐ नो अइ तथा अइ नो ऐ लखवामां चालेली अनियमिततानां थोडां उदाहरण बस छ। गाईस्यूं तुम्ह पसाइ, कर्मण लागइ पाइ (कर्मणमंत्री- सीताहरण) बीजू मुझ कह्नि मागयो, कीजि एह पसाय (हरिदासकृत आदि पूर्व-क0 ४०, १७ मी सदी) स्तुति करी नीचा नम्या, प्रणम्या जैनि पाय. (गुणमेरूनुं पंचोपाख्यान, १७ मी सदी) येणि वैर की— व्यालरों, जागि विमाशी वात (हरिदासकृत आदि पर्व, क0 १८) शीघ्र थै तयो सभा व्यषि, आंहि पांचालीनि ल्यावं. (कृष्णदास- सभा पर्व, क0 २७, १७ मी सदी) गतप्राण थैयनि सभामांहि, बिठाछि सर्व कोइ (सदर) श्री आतश बिहिराम नुसारीमां पधारेआ. (१७१८ नुं एक पुस्तक) चंदा दीपति जीपति सरसति, मइं वीनवी वीनती (धनदेवगणिकृत नेमीफाग-सं. १५०२) अह्यो उभयमांहि अधिक कवण _ (कृष्णदासकृत सभा पर्व क0 ३१) भाइ तेहनी कुण प्रभवी सकि (सदर क0 ३०) (क्रमशः) For Private and Personal Use Only
SR No.525346
Book TitleShrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages68
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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