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श्रुतसागर
मई-२०१९ जोडणी करी होय एम बनवू मुश्केल छे। कोइ लेखमां वयर, वयरागी जेवी जोडणी मळवा संभव छे, तेज रीते १५-१६ मी सदीमां शुद्ध वैर-वैरागी जोडणी पण मळे छ।
लेखकोए जोडणी लखवामां एवी अनियमितता चलाव्या करी छे के ते उपरथी तत्समयनो वास्तविक उच्चार पकडीने तेने अनुरूप कोइ नियम शब्दोनां माध्यमिक स्वरूपो माटे स्वीकारी लेवो ए युक्त लागतुं नथी। इ नो य, य नो इ, ऐ नो अइ तथा अइ नो ऐ लखवामां चालेली अनियमिततानां थोडां उदाहरण बस छ। गाईस्यूं तुम्ह पसाइ, कर्मण लागइ पाइ
(कर्मणमंत्री- सीताहरण) बीजू मुझ कह्नि मागयो, कीजि एह पसाय
(हरिदासकृत आदि पूर्व-क0 ४०, १७ मी सदी) स्तुति करी नीचा नम्या, प्रणम्या जैनि पाय.
(गुणमेरूनुं पंचोपाख्यान, १७ मी सदी) येणि वैर की— व्यालरों, जागि विमाशी वात
(हरिदासकृत आदि पर्व, क0 १८) शीघ्र थै तयो सभा व्यषि, आंहि पांचालीनि ल्यावं.
(कृष्णदास- सभा पर्व, क0 २७, १७ मी सदी) गतप्राण थैयनि सभामांहि, बिठाछि सर्व कोइ
(सदर) श्री आतश बिहिराम नुसारीमां पधारेआ.
(१७१८ नुं एक पुस्तक) चंदा दीपति जीपति सरसति, मइं वीनवी वीनती
(धनदेवगणिकृत नेमीफाग-सं. १५०२) अह्यो उभयमांहि अधिक कवण
_ (कृष्णदासकृत सभा पर्व क0 ३१) भाइ तेहनी कुण प्रभवी सकि
(सदर क0 ३०)
(क्रमशः)
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