________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
15
May-2019
॥ राम भणइ हरि उठीइ ॥ क्रोध तजो रे क्रोधी जना, क्रोधि नरगि जाय रे । सदगति को नवि पाइरे, क्रोधि क्रोधी कि कइवाइ रे।
पापि पिंड भराइ रे, काया दुर्बल थाइ रे क्रो०...॥१॥ अनजान बंधीउ रे क्रोधडु, नाखि दुरगति कुपरे। धोत्रो तणि रे वशि करी, नर गया बहु भुप रे। पड्या नरगनि कुपरे, पाम्या काया करंपरे।
ए छि क्रोध सरंप रे क्रो०...॥२॥ कायामांहि अंगीठडु, बालि कोमल काय रे। निरमल जस जाइ तेहनु, जेहनि क्रोध कषाय रे। समकित मल छेदाइ रे, तप कीधो सवि जाय रे।
चारित्र मेलु ते थाइ रे क्रो०...॥३॥ फरस्युंरामे धो करी, कीधो कर्म कठोर रे। न क्षत्री कीधी रे भुमिका, पडिउ नरगनि ठोर रे। कीधां पाप अघोर रे, पाडि बंब बकोर रे।
तिहां नही केहनु जोर रे क्रो०...॥४॥ आठमु चक्रीय जांणीइ, जिणि कीयु विप्र संहार रे। सभूम समुद्रि पडी, अवतर्यु नरग मझार रे। जिहां छि घोर अंधा(र) रे, भूमीका सस्त्रनी धार रे।
पामि दुख अपार रे क्रो०...॥५॥ दुब्रह्मदत्त ब्राह्मण तणी, काढी क्रोधि ते आंखि रे।
समता तरु फल चाखि रे क्रो०...॥६।। क्रोधि मुनीवर काढता, नमुची नबल प्रधान रे। विष्णु कउमारि चांपीउ, लीधउ दुरगति तांण रे। म करो क्रोध अजाण रे, ए छइ जिनवर वाणि रे।
पडस्यो नरगनी खांणि रे क्रो०...॥७।। १. ?, २. सगडी, ३. (क्रोधो)?,
For Private and Personal Use Only