SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR May-2019 आ बधामांथी चूंटाई धूंटाईने लेखन थतुं होय । हजी आटलंय ओछु होय तेम, अविरत ध्यानसाधना पण चालती ज होय अने कलाकोना कलाको सुधी ध्यान लगाव्या पछी थती आत्मानुभूतिनुं अमृतपान करवामां आवतुं होय! आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजीनी आडायरीओमां एक बाजु सर्जनप्रक्रिया-निबंधो, काव्यो अने चिंतनो इत्यादिनो आलेख मळे छे, तो बीजी तरफ एमना विहार अने वांचनना उल्लेखो मळे छ । आ उल्लेखो प्रमाणमां ओछा छे, परंतु एक आत्मज्ञानीना उल्लेखो तरीके ते ध्यान खेंचे तेवा छे। ___ मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां जैन साधुओने हाथे बहोळा प्रमाणमां साहित्यसर्जन थयु छ। अर्वाचीन युगमां ए परंपरानुं सातत्य आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजीनी साहित्योपासनामां जोवा मळे छ। एमणे मात्र चोवीस वर्षना साधु-जीवन दरमियान संस्कृत, हिंदी अने गुजराती एम त्रण भाषाओमां कुल ११५ जेटला ग्रंथो लख्या। ए समये साधुसमाजमां गमे ते रीते शिष्यो बनाववानी होड चालती हती; त्यारे ज्ञानोपासक बुद्धिसागरसूरिजीए ११५ अमर ग्रंथशिष्यो' बनाववानो निर्णय को हतो। एमना २५ ग्रंथो चिंतन अने तत्त्वज्ञानथी भरेला छे; २४ ग्रंथोमां एमनी काव्यरसवाणी वहे छे, ज्यारे संस्कृत भाषामां एमणे बावीसेक ग्रंथो लख्या हता। एमना काव्यसाहित्य विशे गुजरातना 'युगमूर्ति वार्ताकार' तरीके विख्यात नवलकथाकार श्री रमणलाल वसंतलाल देसाईए कह्यु हतुं : “श्री बुद्धिसागरजी- साहित्य एटले? एने हिंदु पण वांची शके, जैन पण वांची शके, मुस्लिम पण वांची शके। सौने सरखं उपयोगी थई पडे तेवू ए काव्यसाहित्य, बुद्धिसागरसूरिजीने आपणा भक्त अने ज्ञानी कविओनी हारमा मूकी दे एवं छे।” __योगनिष्ठ आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजीना वांचन, मनन अने निदिध्यासननी त्रिवेणीनो अनुभव पण एमनी आ डायरीमाथी थाय छ। आगळ सूचव्यु तेम एमणे घणां वर्षोनी डायरीओ लखी हती, परंतु अत्यारे तो एमनी वि. सं. १९७१नी मात्र एक डायरी ज उपलब्ध थई छे । परंतु आ रोजनीशी ए कर्मयोगी, ध्यानयोगी अने ज्ञानयोगी आचार्यना व्यक्तित्वने नखशिख दर्शावी जाय छे। १९७१नी आ रोजनीशीना आरंभे तेओ गुरुस्मरण करे छे। गुरुस्मरणना आ काव्यमा एमनी तन्मयता सतत तरवर्या करे छे । तेओ विचारे छे के, गुरु पासे मागवानुं शुं होय? ज्यां माग्या विना ज बधुं मळतुं होय छे। (क्रमशः) For Private and Personal Use Only
SR No.525346
Book TitleShrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages68
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy