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श्रुतसागर
दिसम्बर-२०१८ आध्यात्मिक पदो
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी (गतांक से आगे)
(हरिगीत छंद) रत्नत्रयीथी कर्मनी सत्ता टळे छे भव्यने, जेना प्रकाशे सज्जनो करता रहे कर्तव्यने; एवं कथेलुं वेद छे निश्चय जणायूँ छु भणी, एवी अमारी वेदनी छे, मान्यता निश्चय खरी. आत्मा विभु चेतन कहो के ब्रह्म आदि नाम जे, ब्रह्मा कहो हरिहर कहो अल्ला खुदा गुणधाम जे; परब्रह्म नारायण कहो स्याद्वाद सापेक्षा धरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. तीर्थंकरोनी वाणीमां प्रभु नाम सर्व समाय छे, सापेक्षनयवचनोविषे वेदो समाइ जाय छे; श्रद्धा अमारी तादृशी व्यापक विचारो झळहळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जे विश्वव्यापक सद्विचारो वेद ते व्यापक भण्या, सहुजातनी भाषाविषे सहु देशमां जाता गण्या; मानो खरा ए वेदने दिल सत्य वातो नीकळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. ज्यां त्यांथी आवी ने भले सागरविषे नदीओ सहु, सागरविषे नदीओ रही सरितामां सागर कंइ लहुं; श्री जैन शासनमा रह्या छे वेद व्यापक इश्वरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. व्यवहारनी शुभ रीतियो ते वेद सघळा धारवा, सह देश भाषा कालमां वेदो थता अवधारवा; पशु पक्षी वृक्षो आदिमां वेदो जीवंता छे वळी, एवी अमारी वेदेनी छे मान्यता निश्चय खरी.
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