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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 31 SHRUTSAGAR December-2018 छे (पा. ७६. सदर); तेज प्रमाणे सं. १७२४ ना दस्तावेजनी पण विशिष्टताओ छ। (सदर. पान. ७४.) इजिस्नि MFL. हाथप्रत जेने हुं सत्तरमां सैकाना मध्य भागनीकदाच जरा पहेलांनी पण-गणुं छु, तेमांथी नीचे एक फकरो टांकु छु: इजिनि । पा.२७. Notes; पेरा २५३: एम ए ने मारां मनीश मरी छे। एवं प्रकार कुरु जे पृथ्विने विषेथी तेने सर्वने परलोकने करु। ए श्रेष्ठनु द्रुज नाशने करि छ। ए दुष्ट ज्ञानि छे ते प्रतिपक्ष सृष्टि स्वामि करे छे । तुल्यता नाशनो करनारो। आर्हमन छे । मारानि आकर्षण करु छु। पुण्यनि उत्तमनि प्रगट पामि करोमि ॥ । आ अवतरणां अइ=इ अने ए रूढ छ; अउ ओ अने उ पण रूढ छ । सत्तरमा सैकानां गद्य लखाणो में भंडारोमां भरपूर प्रमाणमां जोयां छे। प्रसिद्ध थएलां लखाणोमां सत्तरमां सैकाना मध्य भागनां 'कादंबरीनुं गद्यकथानक' (पुरातत्त्व पु. प. अ. ४. पा.२५६) अकबर समकालीन भानुचंद्र विरचित, तेज कालनी 'वेतालपचीसी' (गद्य) सं. जगजीवन दयाळजी मोदी तेमज पं. लब्धिसागर गणीना 'चार बोल' (पुराततत्व पु. ३. अं. ४. पा. २८१-पा. २९८) वाचके जोवां । केटलाक ग्रंथोमां जूना लेखन प्रकारनुं बल व्यापेलं जोवामां आवशे; पण साथे साथे वाचकने जूना अनुषंगी शब्दोनो अभाव, अइनो इ अने खास करीने ए तरफ वलण, अउन मोटे भागे ओ तरफनं वलण इत्यादि विशिष्ट लक्षणो पण देखाशे। खास करीने कादंबरी कथानक जोडणीने अंगे जोवा जेवू छे । सत्तरमा सैकानां लखाणनुं विचेचन आ निबंध माटे अप्रस्तुत छे, एटले तेनी चर्चा अहिं करवी ए ठीक नथी। (क्रमशः) - श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे. निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर) For Private and Personal Use Only
SR No.525341
Book TitleShrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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