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SHRUTSAGAR
December-2018 है। इनके दादागुरु का नाम मेहमुनि एवं परदादागुरु हीरसूरीश्वरजी महाराज है। इस कर्ता की अन्य कृतियों में- ६३ शलाकापुरुष रास, तीर्थमाला, विजयसेनसूरि रास, श्रीविजयसिंहसूरीश्वर-पदमहोत्सव रास जैसी बड़ी महत्वपूर्ण कृतियों के साथसाथ अन्य लगभग ११ कृतियाँ प्राप्त होती हैं। इसमे 'विजयसेनसूरि रास' वि.सं. १६४९ में (अकबर की मृत्यु से १२ वर्ष पूर्व रचा गया होने से) इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। कर्ता का 'तीर्थमाला स्तवन' जिसका रचना वर्ष वि.सं. १६७८ है, इसका संपादन वि.सं. २०६९ में 'रास पद्माकर भाग-२' में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा द्वारा किया गया है। कर्ता की पर्व कृतियों में 'पंचमीतिथि स्तवन' का भी समावेश होता है। कर्ता की अद्यपर्यन्त प्रायः अप्रकाशित कृतियाँ ४ हैं यथा
१. शनुजयमंडन श्रीआदिजिन स्तवन (गाथा १५) २. नेमराजिमती गीत (गाथा ६) ३. पंचमीतिथि स्तवन (गाथा २१) ४. शांतिजिन स्तवन (गाथा ३२)
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में इन चारों कृतियों में से आदिजिन स्तवन की 3 प्रतें व अन्य सभी की एक-एक प्रत उपलब्ध है।
(दयाकुशल नाम से कई विद्वान हुए हैं। उनमें गुरुनाम व गच्छनाम से रहित दयाकुशल भी प्राप्त होते हैं, परन्तु उनके कल्याणकुशल के शिष्य होने का कोई प्रमाण न मिलने के कारण ऐसे दयाकुशल की ६ कृतियों का यहाँ समावेश नहीं किया गया है।)
कर्ता का समय वि.सं. १६४९ से वि.सं. १६८५ के आसपास का माना जाता है। (वि.सं. १६८५ का वर्षोल्लेख 'श्रीविजयसिंहसूरीश्वर-पदमहोत्सव रास' से प्राप्त होता है) प्रत परिचय:
प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की एक मात्र हस्तप्रत क्रमांक- २९७८१ के आधार पर किया गया है। प्रत के अक्षर बड़े, सुंदर व सुवाच्य हैं । प्रत का लेखन स्थल श्रीद्वीपबंदर उल्लिखीत है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर 'श्रीद्वीप' एवं 'द्वीप' का उल्लेख चार हस्तप्रतों में (लेखन स्थल के रूप में) पाया गया हैं। हस्तप्रतों
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