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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर सितम्बर-२०१८ कृतवर्मा नंद आनंद को कंद अपच्छर वृंदं मिली गुण गावें', वर्दै हरी एम सेवो एम जिन जेम सहज मै सिध वधु घर आवै ॥१३॥ ॥ श्रीविमलनाथजी वर्णनं । सवेयौ २४ ॥ अनंतरुप अलख अगोचर तोहि का भाषित भेद जीने', जिनै भव भेद की वास लही मांनु जेम लीयै चचरी कन लीनै । तौही का नाम की गवर' मै रंग राग मै रहते सदा रस भिनै । कहै हरी एम अनंत जिनेसर अनंत ही तेरे ग्यांन खजीनै ॥ श्रीअनंतनाथजी वर्णनं ॥ सवेइयो २३ सौ॥ ध्रम को दाता ही धरम जिनेशर धर्म को मारग सोही वतायो, लखचोरासी जीव की जोन' मै भ्रमत भ्रमत भ्रम मिटायो॥ धर्म' जिणंद की सेउ गहै भवी:' ध्रम प्रभाव थै सुख सवायौ ॥ पूरव पून्य थै भाग्य जग्यो हरी धर्म जिनेसर के पद पाया ॥ श्रीधर्मनाथजी वर्णनं ॥ सवेयौ ३२ सौ ॥ ॥१४॥ ॥१५॥ तोही सै लय लागी अब मेरी भव भ्रांत भागी सयल प्रभु शांतिजी शांति वरताइ है, अचिरा के नंद सुखकंद वंद मुखचंद ज्यौति जिलमील झिलती सूर थे सवाइ है। सकल इंद नागेंद नमे पाय आय सब चरण कै शरण रहै। सदा सुखदाई है, शौलमा श्रीशांति जिन तहारी सेव सेती वदत हरीयंद मै रीधसिधः भरपाइ है।।१६।। ॥ श्रीशांतिनाथजी वर्णनं । सवेया २४ सौ ॥ श्रीकुंथुजिनेसर हे अलवेसर इश्वर तीन जगत मै मोटे, तुं पुन्य पडूर गुणे' भरपूर ते जै करी सूर है सूर कै धौटे। 1. यह चरण प्रत A में नहीं है. 2. A वहै, 3. B अनंतअरुप, 4. B झीने, 5. B भवी, 6. B चंचरी, 7. B की गद्वार, 8. Aकी 9. B लख्यचोरासीय जीउ की योन, 10. B ध्रम्म, 11. B जिनंद के पाउ गहै भवी, 12. B शरन गहे, 13. B सोलमा, 14. B गुने For Private and Personal Use Only
SR No.525338
Book TitleShrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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