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॥९॥
॥१०॥
॥१२॥
SHRUTSAGAR
June-2018 जेतलइ भूपति आण वरतइ, तेतलइ' घर घर प्रतिइं जईअनइ भूपति कन्हलि मागइ, भोलाविउ रामा मतिइ भाखई भूपति नरपति तुंहनइ', करवा समरथ सिउं कहिउं मुहनइं'। मो कन्हलि ए तिइ किसिउं मागिउं, अरे मूरिख बांभणा घरणि ताहरी अछइ भोली, न जाणइ गुण अवगुणा ते कहइ वलतुं सुणु स्वामी, एतलुं दिउ मूंहनइं। सयल लोक समुख्य भूपति, कहइ दीधउ तुहनइ पहिलउ ए भोजन चक्रधर घरे करइ, अनुक्रमि जिमतु सघले ते फिरइ। ते फरइ जिमतु घरे सघले, अंतेउर महि तातणे'। किम लहइ वारु वली वहिलु, भूपति घरि वरसे घणे
॥११॥ इम लही नरभव जेणि हारीओ, वली वलतु किम लहइ श्रीसोमविमलसूरिंद पहिलं, एह ऊठउ इम कहइ
॥ इति प्रथम भोजन दृष्टांत -१॥
॥ढाल त्रिपदी॥ पाडली पुरवर नयर वखाणउ चंद्रगुपति' नामइ तिहा जाणुं सपरांणु राणु अछइ ए ॥१॥ तस घरि चाणिक नामिइ महितु अभयकुमार मंत्री बुधि' (बुद्धि) धरतु भरतु घर भूपति तणुं ए
॥२॥ 1 Ac तेतला, bतेतलइ 2 aहाकइ, bभाखइ, cभाखि 3 aतेहनइ, bतुंहनइ, cतुहनी 4aमोहनइ, bcमुहनइ 5 कन्हली, bमुं कनि, cमुझ कनि 6aमूरिख, bcमूरख 7acतातणे, bभिमहितातणा 8aवहिलु, bcवलतु 9 चंद्रगुपतिभूपति 10 aमुहतु, bमहितु 11 aबुधि, bमति
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