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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir September-2017 SHRUTSAGAR धी लोअणाइं जाइं, इंदिवरदलसमाई कप्पेइं(इ)। मोहंधो एस जीओ, मंसस्स गोलया ते उ॥३॥ जे आंखोने मोहांध एवो जीव कमळपुष्पनी पांखडी समान माने छे ते आंखों वास्तविक पणे तो मांसना बे गोळा ज छे. आंखोने कमळपुष्पनी पांखडी समान माननार ते मोहांध जीवने धिक्कार हो. मन्निज्जइ सो अहरो, सव्वामयरससमूहनिम्मविओ। दीहागारेण ठिअं, मुणह तयं चम्मरखं पि॥४॥ आ होठने सर्व अमृतना समुहथी ज जाणे बनाव्या होय एवं तुं माने छे खरी रीते तो ते लांबो पथरायेलो चामडानो टूकडो ज छे एवं हे जीव ! तुं जाण. जे कुंदकलियवरयंति-सत्थहा मन्निया इमे दसणा। ते हड्डखंडमालं, पच्चक्खं मुणसु रे जीव ॥५॥ हे जीव ! जे आ दांतना समूहने तुं सफेद चमेलीना फूलोनी श्रेणिनी कांति जेवा उज्ज्वळ माने छे ते प्रत्यक्षपणे तो हाडकाना टूकडाओनी माळा ज छे, एवं तुं जाण. जं पि मुहं अइरम्मं, विसट्टकंदोदृसत्थहं कलिअं। तं पि गलंतय-लाला-करालियं किं न चिंतेसि ? ॥६॥ जे सुंदर एवा आ मुखने ते खीलेला नीलकमल जेवू मान्यु ते मुख पण तेमांथी टपकती एवी लाळथी विकृत ज छे, एवं तुं केम विचारतो नथी? निम्मलकंचणकलसुव्व, भाविआ जे पओअरा रुइरा। अविवेइणा जणेज(ण), तं भावसुं मंसगुरुपिंडा ॥७॥ अविवेकी मनुष्यो स्तनने निर्मळ सोनाना कळश जेवा मनोहर माने छे ते 'आ मांसना ज बे मोटा पिंड छे' एवो तुं विचार कर. जं उअरं अइसरु(रू)इरं, विभाविअंमोहमोहिणअमणेहि। तं असुइनिवहसंपूरिऑ, [जी|व ! किर कोठयं मुणह ॥८॥ मोहथी ग्रस्त थयेला मनवाळा जीवो स्त्रीना पेटने ‘अति मनोहर छे' एवं विचारे छे, पण हे जीव ! खरेखर तो ते पण गंदकीना समुहथी भरायेली [चामडानी] कोठी ज छे, एवं तुं समज. For Private and Personal Use Only
SR No.525326
Book TitleShrutsagar 2017 09 Volume 04 Issue 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
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