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SHRUTSAGAR
August-2017 जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम्
(इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं' अक्षतं फलं फूलं धूप दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा । ॥ अथ नवाङ्गमध्यात् प्रथमाङ्गुष्ठ पूजा ॥
॥हा॥ सास्वति दोय अट्ठाहिये, जे पूजे जिनराज; ते प्राणी सास्वत सुखे, कोडि सुधारे काज चरण जान कर अंस सिर', भाल ग्रीवा वली वक्ष'; नाभि नी नवमी कही, पूजा एह प्रत्यक्ष रचस्यं ते प्रभु ऋषभनी, पूजा एह नवांग; पिण पहेलां अंगुष्ठनी, पूजा पछी नव अंग जल भरी संपुट पत्रना(मां), युगलिक नर पूजंत; ऋषभ चरण अंगूठडा, दायक भवजल अंत
॥४॥ श्रीआदेश्वर कल्प परि, वंछितवरदातार; त्रीजारक अंते थया, सग कुलकरथी सार
॥ढाल २॥रे मारी सहि रे समांणी- ए देशी॥ पूरव पश्चिमे महाविदेहे, बिहुं सज्जन ससनेहे रे; सुणो सयण सवेइ एक सरल बीजो वक्र सखाई, चोरथी कन्या रखाई रे,
सुणो० ॥१॥ परण्यो सरल ने वक्र छे धीठो, ते त्रिण्यनो भव नीठो रे; सुणो० दंपति-युगल थया गंगामां, वक्र थयो नागामां रे,
॥२॥ सुणो० जातिसमरण हाथी अकोहे', युगलने खंधे आरोहे रे; सुणो० अन्य युगल मिली विमलवाहन कही, हसि हसि बोले उमही हो, ॥३॥ सुणो० एम प्रथम थयो विमलवाहन नृप, चंद्रयशा स्त्री अदर्प रे; सुणो० नवशत धनुष छे कोमल काया, दंड ‘ह’कार ठराया रे,
॥४॥ सुणो० 1. क्रोध वगरनो थइ.
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