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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 ॥१॥ ॥२॥ ॥१॥ ॥२॥ SHRUTSAGAR August-2017 जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम् (इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं' अक्षतं फलं फूलं धूप दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा । ॥ अथ नवाङ्गमध्यात् प्रथमाङ्गुष्ठ पूजा ॥ ॥हा॥ सास्वति दोय अट्ठाहिये, जे पूजे जिनराज; ते प्राणी सास्वत सुखे, कोडि सुधारे काज चरण जान कर अंस सिर', भाल ग्रीवा वली वक्ष'; नाभि नी नवमी कही, पूजा एह प्रत्यक्ष रचस्यं ते प्रभु ऋषभनी, पूजा एह नवांग; पिण पहेलां अंगुष्ठनी, पूजा पछी नव अंग जल भरी संपुट पत्रना(मां), युगलिक नर पूजंत; ऋषभ चरण अंगूठडा, दायक भवजल अंत ॥४॥ श्रीआदेश्वर कल्प परि, वंछितवरदातार; त्रीजारक अंते थया, सग कुलकरथी सार ॥ढाल २॥रे मारी सहि रे समांणी- ए देशी॥ पूरव पश्चिमे महाविदेहे, बिहुं सज्जन ससनेहे रे; सुणो सयण सवेइ एक सरल बीजो वक्र सखाई, चोरथी कन्या रखाई रे, सुणो० ॥१॥ परण्यो सरल ने वक्र छे धीठो, ते त्रिण्यनो भव नीठो रे; सुणो० दंपति-युगल थया गंगामां, वक्र थयो नागामां रे, ॥२॥ सुणो० जातिसमरण हाथी अकोहे', युगलने खंधे आरोहे रे; सुणो० अन्य युगल मिली विमलवाहन कही, हसि हसि बोले उमही हो, ॥३॥ सुणो० एम प्रथम थयो विमलवाहन नृप, चंद्रयशा स्त्री अदर्प रे; सुणो० नवशत धनुष छे कोमल काया, दंड ‘ह’कार ठराया रे, ॥४॥ सुणो० 1. क्रोध वगरनो थइ. ॥३॥ ॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525325
Book TitleShrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
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