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SHRUTSAGAR
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सुंदर साहा मांडण तणा गाउं गुणसार, संखेपिं कविता कहिसु [सु]णयो सुखकार थिरपुरनयर सोहामणुं तिहां श्रीसंघ मिलीउं, फागुण दि बारस दिन यात्रा सांचरीउं; गाडा वाहिणि छत्रडीमांहि बहू सेजवालां, तिहां बिसि मांणस घणां बहू चालि पालां संघ साथि साजिम घणीणा भल विप्र त्रगाला,
बाला बूढा पातला भला नर दुंदाला; साहा जेसादिक संवरी साथिं भद्रक भोला, संघ मजलि थोडी करि नित नित रंगरोला
॥ राग-धन्यासी ॥
।। ढाल-ऊलालानी ।। तुं राय मनहि विमासि ए ढाल ॥
चालिउ श्रीसंघ जाइ शुकन अनोपम थाइ; मिलीआ मनुष्यना वृंद, हईअडलि अतिहिं आनंद चतुः परवी नवि चालि, अवधि करि तस पालि; चालि ऊगति सूर विघन टल्या सवि दूरि(र) सामग्री सवि सार, संघपति चित्त उदार; गांमि गांमि बिंब अरचि, धन सुठांमि बहू खरचि श्रावक बहु तसु जांण, लोपि नहीं जिन-आंण; विधिसुं संघ चलावि, दिवस निशात गीत गावि हडादरि इम पुहतु, गिरि चडीउं गिहिगिहितु; अरबुदगिरि अति चंग, जिन निरखि थयुं रंग
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॥ ढाल । एक दिन युगलीआं बोलि रे - ए| देशी ] ॥
रंग थयुं जिन निरखि रे, साहा मांडण मनि हरखि रे; स्नात्र सतरे भेदे कीधां रे, काज अपूरव सीधा रे अचलगढिं संघ चडीउ रे, पुन्य-योग बहू जडीउ रे;
तिहां कीधां घणां स्नात्र रे, पवित्र करां निज गात्र रे
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July-2017
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