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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR June-2017 करवी जोइए एवं य आपणने लागतु नथी. पूर्वे तो समाचारनी आप-ले करवी घणी दुष्कर हती त्यारेय विज्ञाप्तिपत्रो, खामणा पत्रिकाओ द्वारा संघो एक–बीजाने त्यांनी आराधनानी अनुमोदना करतां. पोताने त्यां गुरूभगवंत पधारे त्यारे एथी पण भव्य आराधना करवानी इच्छा राखतां. कदाच प्रस्तुत कृति पण तेवां ज अनुमोदनानां उद्देशथी रचाई हशे. कृतिमा उल्लेखित सांजी, रातीजगो, भक्तिभावना, दान, आगम, पूजा, प्रभावना, व्याख्यान श्रवणनी वातो पर्वाधिराजनां तत्कालीन उजमणानां स्वरूपनी नोंध छे. काव्यने कविए पोतानां गच्छनां तथा गुरुभगवंतनां नामोल्लेखपूर्वक काव्यसमापन कर्यु छे. कृतिनी रचना कविए कई संवतमां करी ते अंगे काव्यमां कोइ स्पष्ट उल्लेख नथी पण वि.सं.-१७५४मां अहीं पोते चोमासु रह्यां होई त्यारे ज आ कृति रची होय तेवू बने. प्रान्ते संपादन माटे प्रस्तुत कृतिनी झेरोक्ष आपवा बदल श्रीहेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर-पाटणनां व्यवस्थापक श्री यतिनभाईनो खूब खूब आभार. दहा ॥॥सकल सुमति ध(दे)इ सारदा, वाधइ जग यशवेल; रूपपुर पास जिणेसरू, स्तवतां रूपारेल' ढाल-विंछीयानी श्रीरूपपुर पास जिणेसरु, गुण गावा मुझ मन थाय रे, लाला नयरी वणारसी जाणीयै, तिहां अश्वसेन नामै राय रे ॥१॥ श्री रूपपुर... रानी वामा धरणी सती, जनम्या श्रीपासकुमार रे, लाला नीलकमलवरण नव हाथनी, काया जेहनी सुखकार रे ॥२॥ श्री रूपपुर... जसु लंछन सर्प सोहामणुं, सोभागी श्रीजिनराय रे, लाला मनवंछित पूरइ लोकनां, दूख दालिद्र दूर मिटाय रे ॥३॥ श्री रूपपुर... इम जगगुरु यौवन पामीयुं, परण्या परभावती नारि रे, लाला मनईच्छारहीत अरिहंतजी, सुख भोगवइ जग-हितकार रे ॥४॥ श्री रूपपुर... इणि अवसर कमठ ते आवीयुं, तापस तपस्यानो पूर रे, लाला चिहुं पासि अगनि कुंडे भरी, उपरि तप तपतो सूर रे ॥५॥ श्री रूपपुर... ॥१॥ 1 रेलंछेल. For Private and Personal Use Only
SR No.525323
Book TitleShrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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