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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजा हेतु (गतांकथी आगळ...) आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी श्री वीर प्रभुए छेल्लां वखते सोळ प्रहर सुधी देशना दीधी. श्रीवीर प्रभुए जगतने तारवा माटे जे उपदेश दीधो ते कदी भुलाय तेम नथी. तेमनां कंठनु वारंवार पूजन करीने तेमनां गुण प्राप्त करवा प्रयत्न करवो ए ज पूजकोनुं खरं कर्तव्य छे. प्रभुनु हृदय पूजीने प्रभुनां हृदयनी पेठे आपणुं हृदय शुद्ध बनाववा संकल्प करवो. प्रभुए ध्यान धरीने केवळज्ञान प्रगटाव्यु ते प्रमाणे आपणे पण ध्यान धरवा प्रयत्न करवो जोइए. छद्मस्थावस्थामां प्रभुए क्षमादि अनेक गुणोने हृदयमां धारण कर्यां हतां अने मेरु पर्वतनी पेठे हृदयमां धैर्य धारण करीने उपसर्गोथी चलायमान थयां नहोता. प्रभुनां हृदयने पूजीने प्रभुनां हृदयगुणो लेवा दृढ संकल्प करवो. प्रभुनु हृदय पूजीने ते, हृदय बनाववा दररोज चांपता उपायो लेवा. प्रभुनां हृदयमा रहेलां दरेक गुणोनुं स्मरण करीने प्रभुनुं हृदय पूजवामां आवे तो पूजकोनां हृदयनी शुद्धि थइ शके. प्रभुनां हृदयने पूजीने हृदयनां प्रत्येक गुणो लेवा दृढ संकल्प करवो. हे प्रभो! तमारं हृदय जेवू निर्मळ छे तेवू मारुं हृदय करवाने माटे हुं तमारं हृदय पूजीने दृढ संकल्प करीने मारुं हृदय आजथी शुद्ध बनाववा प्रयत्न करीश. मारां हृदयमा रहेलां क्रोधादिक दोषोने हवे हुं आपनुं हृदय पूजीने दूर करवा प्रयत्न करीश. आपनां हृदयर्नु आलंबन लेइ मारुं हृदय शुद्ध करवा आजथी खरा अंतःकरणथी प्रयत्न करीश. हे प्रभो! आपनां हृदयमां प्रगट थयेल ज्ञानने प्राप्त करवा माटे मारां हृदयनी आजथी हुं शुद्धि करीश. शुद्ध हृदयनी शुद्धतानो प्रकाश खरेखर शुद्ध हृदयमां पडी शके छे. आपनां हृदयनी पूज्यता अवबोधायाथी मारां हृदयमां आपनुं हृदय ध्येयाकार रीते परिणमावीश अने आपनां हृदयनां गुणो प्राप्त करीश. एम, हृदयनी पूजा करतां दृढ संकल्प करवो. जे लोको प्रभुनु हृदय पूजे छे अने प्रभुनां हृदयनां गुणो पोतानां हृदयमां प्रगटावतां नथी तेओ प्रभुनी हृदय पूजानु माहात्म्य सम्यग् अवबोधी शकतां नथी. पत्थर पण दोरडीनां घसाराथी घसाय छे, पण जेनु हृदय खरेखर प्रभुनां हृदयनी पूजा करतां पापथी दूर न थाय तो समजवू के ते जीव हजी संसारमा घणो वखत परिभ्रमण करशे. प्रभु हृदय पूजती वखते दररोज हृदयमां विचार करवो के प्रभुनु हृदय पूजीने मारां हृदयमां में क्या क्या गुणो प्रगटाव्यां अने हजी क्या क्या गुणो प्रगटाववानां बाकी छे. दररोज प्रभुनां हृदयने पूजीने गृहस्थ जैनोए हृदयनी शुद्धता करवा प्रयत्न करवो. पूजार्नु For Private and Personal Use Only
SR No.525321
Book TitleShrutsagar 2017 04 Volume 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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