SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन न्यायनो विकास (गतांक से आगे...) मुनि श्री धुरंधरविजयजी आ सिवाय रन्तप्रभसूरि, महेश्वराचार्य, सोमप्रभसूरि, उदयप्रभदेव, प्रद्यम्नाचार्य, मुनिदेवसूरि, सोमचंद्र पंडित, मेरुतुंगाचार्य, मुनिभद्रसूरि, गुणरत्नसूरि, मुनिसुन्दरसूरि, धर्मसागर उपाध्याक वगेरेए अनेक स्थले आ वादने माटे सूरिजीनी अनेक प्रकारे प्रौढ कीर्तिनी विख्याति करी छे. यशश्चन्द्रे तो आ वादना सम्पूर्ण प्रसंगर्नु वर्णन आपतुं 'मुद्रितकुमुदचन्द्र प्रकरण रच्यु छे, जे घणु रोचक छे. तेमनामां ग्रन्थरचनानी शक्ति पण अद्भूत हती. तेओए जैन न्यायना प्रवेश माटे उपयोगमां आवे तेवो ३७४ सूत्र प्रमाणे 'प्रमाणनतत्त्वालोकालंकार' नामनो न्यायनो मूलग्रन्थ आठ परिच्छेदमां रच्यो छे. तेना पर तेओश्रीए ज 'स्याद्वादरत्नार' नामनी विस्तृत वृत्ति लखी छे, तेनुं प्रमाण ८४००० हजार श्लोक जेटलुं छे. तेमां दार्शनिक विषयो- सुन्दर खंडनमंडनात्मक स्वरूप छे. जो के ते वृत्ति हालमा सम्पूर्ण उपलब्ध नथी तो पण जेटली उपलब्ध छे तेटली सारी रीते प्रकाशमां आवेल छे. ते वृत्तिनुं काठिन्य पण घणु समजायेल छे. तेमां प्रवेशार्थे तेमना शिष्य रत्नप्रभसूरिजीए 'रत्नाकरावतारिका' नामनी लघु वृत्ति मूलसूत्र पर रची छे. तेमां ‘स्याद्वादरत्नाकर'नी खूब गंभीरता बतावी छे. तेओए तथा अन्य आचार्योए ‘स्याद्वादरत्नाकर'ना घणा वखाण कर्या छे. 'स्याद्वादरत्नाकर'नी रचनामां वादि देवसूरिजीना बे शिष्यो भद्रेश्वरसूरि अने रत्नप्रभसूरिजीए सहकार आप्यो हतो. आ माटे तेओए ज लख्यु छे के – किं दुष्करं भवतु तत्र मम प्रबन्धे, यत्रातिनिर्मलमति: सतताभियुक्तः। भद्रेश्वरः प्रवरसूक्तिसुधाप्रवाहो, रत्नप्रभश्च भजते सहकारिभावम् ॥ १८-१९ श्री अमरचंद्रसूरिजी अने श्री आनंदसूरिजी आ बन्ने आचार्यो विक्रमनी बारमी सदीमां थया. तेमणे सिद्धराजनी सभामां बाल्यावस्थामां ज वादोने हरावी विजय मेळव्यो हतो, तेथी सिद्धराजे तेओने अनुक्रमे 'सिंहशिशुक' अने 'व्याघ्रशिशुक' एवां बिरुद आप्यां हतां. श्री अमरचंद्रसूरिजीए 'सिद्धान्तार्णव' नामनो ग्रन्थ रच्यो छे. डॉ. शतीशचंद्र विद्याभूषण, उपरना बे बिरुदने आधारे-महातार्किक गंगेशोपाध्याये 'तत्त्वचिन्तामणि' नामनो नव्यन्यायनो महाग्रन्थ रच्यो छे, तेमां व्याप्तिस्वरूप पर लखतां व्याप्तिनां बे लक्षणोनुं नाम 'सिंह-व्याघ्र लक्षण' एवं आप्यु छे, कदाय ते बे लक्षणो उपरोक्त बे महातार्किकोनी मान्यतानां For Private and Personal Use Only
SR No.525321
Book TitleShrutsagar 2017 04 Volume 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy