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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 श्रुतसागर अप्रैल-२०१७ देखाती प्रतिमा श्री संभवनाथ भगवाननी छे. तेनो लेख नीचे मुजब छे. सं.१६०५ फागुण सुदि दसमी। श्रीसमेतशिखर। गागपत्नी तूरमिनी पुत्र खेतु लघुभ्राता प्रोतमल[लेन] सं० खेतु गुरु श्रीजिनभद्रसूरि । श्रीसंभवनाथ । श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे भ० भावतिलक प्र०। भावार्थ- गागपत्नि तूरमिनीनां पुत्र संबंधी खेतुनां नानाभाई प्रोतमले खेतुनां गुरु श्री जिनभद्रसूरिजीनां [उपदेशथी] रुद्रपल्लीगच्छनां भट्टारक भावतिलकसूरिजी पासे वि.सं. १६०५ फागण सूद १०नां संमेतशिखर पर संभवनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा करावी. __ अहीं प्रश्न थशे 'संमेतशिखर' शब्द अहीं शा कारणथी लखायो छे? आ प्रश्ननां जवाब माटे आपणे आपेल चित्र जोइशं. आ चित्रमा मूर्तिनी पाछळनी बाजुं २ गोळ कडीओ देखाय छे. आ कडी बिंब ढाळती वखते धातुनो रस रेडवा रखाई होय तेम लागतुं नथी उलटुटुं पाछळथी ते जोडाय होय तेवु लागे छे. अहिं एक कल्पना करीए के प्रतिमाजी नानां होई पडी न जाय तेवी इच्छाथी मूर्ति पाछळनी कडीओने कोइक खीला जेवां स्थानमां परोवी राखवा आq कर्यु होय. आपणे धातुनी प्राचीन, पंचतीर्थीओमां पबासनमा राखवामां आवेलां, धातुनां नानां भगवान माटेनी आवी व्यवस्था जोतां आव्यां छीए. कदाच आपणी कल्पना मुजब ज मूर्तिनी रचना होय तो जेम श्री संभवनाथ भगवाननी एक मूर्ति आवी होय अने तेनी स्थापना एक पथ्थरमां करवामां आवी होय, ते ज रीते समेतशिखरमां निर्वाण पामेल अन्य पण १९ तीर्थंकरोनी आवी ज रीते कडीवाळी मूर्तिओ हशे. वळी ते बधानी एक आरस के धातुना पट्टमां स्थापना कराई हशे. अने ते मूळ पट्ट काळक्रमे नाश पाम्यो हशे. पण तेनो आ संभवनाथ भगवानवाळो टुकडो कदाच बची जई आपणने मळ्यो होय तेवू बने. प्रतिमा जुदी-जुदी होय तेथी जुदा-जुदां व्यक्तिने ते-ते प्रतिमा भराववानां लाभो अपाया होय, पण उपरोक्त वात माटे एकाद पुरावो मळे त्यारे ज कल्पना संगत थाय अने इतिहासनां एकाद महत्वपूर्ण पासानु रहस्य खुल्लुं थाय. For Private and Personal Use Only
SR No.525321
Book TitleShrutsagar 2017 04 Volume 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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