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पूजा हेतु
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी संवत् १९६७
जिनेश्वर प्रभुनां नव अंगे पूजा करवानां हेतुओ शास्त्रोमां दर्शाव्यां छे. प्रभुनां गुणो लेवाने माटे प्रभुनी पूजा करवानी जरूर छे. वीतराग देव पर शुद्ध प्रेम प्रगटवाथी वीतराग प्रभुनी दशा प्राप्त करवा विचारो प्रगट्या करे छे. वीतरागनी प्रतिमा देखीने वीतराग दशानुं स्मरण करवू अने प्रभुनां जेवी पोतानामां वीतराग दशा प्रगटाववा प्रयत्न करवो. प्रभुनी प्रतिमा देखीने वारंवार तेमनां जीवन चरित्रनु स्मरण थाय छे अने तेथी तेमनां गुणोनुं वारंवार स्मरण थाय छे. शुद्ध प्रेम पूर्वक गुणोनुं स्मरण करवाथी हृदयमां गुणोना संस्कार पडे छे अने अन्ते वीतरागना जेवा गुणो पोताना आत्मामां प्रकटी नीकळे छे. कारण पामीने वीतरागनां गुणोनुं स्मरण थाय छे. प्रभुनां गुणोनुं स्मरण करवाने माटे प्रभुनी प्रतिमानी आवश्यकता छे. कारण के प्रभुनी प्रतिमारूप आलंबन पामीने भक्तो प्रभुनां गुणोनुं स्तवन, मनन, स्मरण करी शके छे. प्रभुनी प्रतिमामां प्रभुनो आरोप करवामां आवे छे अने प्रभुनी आगळ भक्तो दोषो टाळीने गुणो लेवाना विचारो करे छे. प्रभुनां गुणो स्मरण करीने पोतानामां रहेलां दुर्गुणो काढवाने माटे दृढ प्रतिज्ञाओ करे छे. प्रभुनां गुणो प्राप्त करवा माटे प्रभुनी प्रतिमानी पूजा करे छे. पूजानां अनेक भेदो वडे प्रभुने पूजे छे. प्रभुनां सेवक बनीने भक्तो पोताना हृदयना उभराओ बहार काढे छे अने प्रभुने हृदयमां स्थापन करे छे. जेटली वखत सुधी प्रभुनां गुणोनु कीर्तन करवामां आवे छे तेटली वखत सुधी आत्मा पोताना स्वभावमा रमणता करे छे अने तेनाथी हृदयमां गुणोनां बीजो वावे छे के जे कालान्तरे वृक्ष रूपे देखाय छे. संसारी जीवो जेवां जेवां कारणो पामे छे तेवां तेवां प्रकारना विचारो करवामां तत्पर थइ जाय छे. संसारी जीवो बाह्य अनेक कारणोने प्राप्त करीने दीवसनो मोटो भाग संसारमा व्यतीत करे छे तेवां जीवोने जिनप्रतिमान आलंबन मळे छे तो प्रभुनां गुणो प्राप्त करवा तरफ तेओर्नु मन वळे छे.
प्रभुनां जमणा पगना अंगुठे पूजा करीने मनमां एवं विचारवं के भगवान् पगना बळ वडे देशोदेश विचर्यां छे. अनेक जीवोने बोध आपीने तारवामां पगनी साहाय लीधी छे माटे प्रभुनां जमणा पगने पूजीने आपणे पण प्रभुनां जमणा पगनी पेठे धर्मनां कार्यो करवां जोइए. चरण कमल पूजीने सेवाधर्म स्वीकारवो जोइए. आखा
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