SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में सादर समर्पित करते हुए अपार आनन्द की अनुभूति हो रही है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. का लेख “पूजा हेतु” का प्रथम अंक प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में जिनेश्वर वीतराग प्रभु के पूजन करने का उद्देश्य स्पष्ट किया गया है, इस लेख से “देवं भूत्वा यजेत् देवम्” सूक्ति आध्यात्मिक रूप से चरितार्थ हो रही है। द्वितीय लेख राष्टसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है। __ अप्रकाशित कृति प्रकाशन स्तंभ के अन्तर्गत इस अंक में दो कृतियाँ प्रकाशित की जा रही है। प्रथम कृति कवि हंसरत्नप्रणीत “शिक्षाशतबोधिका” नामक एक आलोचनात्मक काव्य जिसमें कर्ता ने सरल भाषा में धर्म-अधर्म, सुगुरु-कुगुरु, ज्ञान-अज्ञान आदि विषयक आत्मप्रतिबोधात्मक शैली में उपदेश दिया है। इसका संपादन गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. ने किया है। द्वितीय कृति खरतरगच्छीय उपाध्याय श्री लक्ष्मीवल्लभजी म.सा. द्वारा रचित “छिन्नं जिनवरारौ स्तवन" है जिसका सम्पादन आर्य मेहलप्रभसागरजी म. सा. ने किया गया है। इस कृति में कर्ता ने ४ ढालों में २४ अतीत, २४ अनागत, २४ वर्तमान, २० विहरमान व ४ शाश्वत इस तरह कुल ९६ जिनवरों की स्तुति-वंदना की है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत आर्य श्री मेहुलप्रभसागरजी द्वारा २ भागों में संकलित उपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी की कृतियों का संकलन “क्षमाकल्याणजी कृति संग्रह” नामक पुस्तक का समीक्षात्मक विवरण प्रस्तुत है । उपाध्याय क्षमाकल्याणजी के द्विशताब्दी स्वर्गारोहण वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित पुस्तक की समीक्षा ज्ञानमंदिर के पंडित श्री भाविनभाई पण्ड्या ने लिखी है, यह पुस्तक विद्वानों एवं संशोधकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। __ पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में आचार्य श्री धुरंधरसूरीश्वरजी द्वारा लिखित लेख “जैन न्यायनो विकास” गतांक से आगे का अंश प्रकाशित किया जा रहा है. इसमें जैन दार्शनिक ग्रन्थकारों में से श्री वीराचार्य, श्री मुनिचंद्रसूरि, श्री चंद्रसूरि, मलधारी श्री हेमचंद्रसूरि जैसे महापुरुषों के जीवन-कवन का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। ___आशा है इस अंक में संकलित सामग्री द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे अगले अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके। For Private and Personal Use Only
SR No.525320
Book TitleShrutsagar 2017 03 Volume 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy