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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 March -2017 ॥७१॥ ॥७२॥ ॥७३॥ ॥७४| ॥७५॥ ॥७६॥ SHRUTSAGAR गान तान नाचण रमण, पिंड-पोषण पर- भाम; इम आचरता प्रभु मिले, जोवो निसूगनी' वात थया वैरागी घर तजी, लीला गाये सराग; करे भवाइ नारीमां, अहो ! फूल्यो वैराग अभक्ष भखो मदिरा पीवो, करो अगम्य व्यवहार; एकाकारथी मुक्ति छे, धिर धिग् कलि-आचार देह जेह अशुचि भर्यो, अशुच थकी उतपन्न; मनि मेला जल स्नानथी, शुच माने ते तन्न देह आतमने मेल स्यो ? ते धोया शुं थाय ? आत्म जिम निर्मल होये, खोजो तेह उपाय कोईक जाति-मदे भर्या, कोई कामार्ति मगन्न; कोई कुविद्या बले करी, तृण जिम गणे भवन्न दोष कही कही टोकतां, नाहक निंदा थाय; लागे दुःख ते लोकने, तेहमां गुण नही काय इणि परे ए कलिकालनी, लीला कही न जाये; कोटि वर्ष लगे जो "कथे, तो पिण पूरी न थाये अथवा ए कलिकालनो. नथी कोई इहां वांक; अजोग्य जीव ते सर्वदा, होइ निर्लज निःसंक पण आत्मार्थि जे होय, ते देखे निज दोस; दोष तजी गुण संग्रहे, न धरे रागने रोस प्राणी बेखबरी पणे, खोया जन्म अनंत; तत्त्वज्ञान तलास विण, आव्यो नही हुए अंत केई पशु पंखी वृक्षनी, करे १२अज्ञानी भक्त; इम न लहे जे एहथी, थासे केही परे मुक्ति(क्त) सकल शास्त्र कहे मुक्तिनु, साधन ज्ञान प्रमाण; तो पिण मिथ्या धंधमां, भूला भमे अजाण ॥७७|| ॥७८॥ ॥७९॥ ॥८०॥ ॥८१॥ ॥८२॥ ॥८३॥ 1 निर्दय. For Private and Personal Use Only
SR No.525320
Book TitleShrutsagar 2017 03 Volume 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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