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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2017 ॥५८॥ ॥५९॥ ॥६०॥ ॥६॥ ॥६२॥ ॥६३॥ SHRUTSAGAR 17 चिदानंद माया रचे, गुरु पण करे कुकर्म; अहो ! डाह्या पण लोकनो, जीव-हिंसा पण धर्म "चिदानंद किम माया रचे, गुरु किम करे कुकर्म; जुवो क्षणिक दिल खोलीने, हिंसामा 'भोठ' -धर्म दोष रहित देव ते भजो, गुरु ते जे निःसंग; धर्म विवेक दया सहित, ए त्रण मुक्तिना अंग ज्ञान तिहां माया नही, माया तिहां नही ज्ञान; तिमिर उद्योत तणी परे, ए अंतर असमान चिदानंद पूरण परम, 'विभु सदा अविकार; ते कहो किम माया रची, उतारो भू "सारी विविध अंश भेदे करी, वली विविध अवतार; एक ज ते परमात्मना, छे विभूति विस्तार जे जे अंश विभूतिने, ग्रही भली ते जाण; तेह तेहथी उद्धरे, ए पण नही प्रमाण इम तो भव-जंतु थस्ये, सर्वे ते भजवा-जोग्य; भेद नही विभु अंशमा, कहेस्ये कुण अजोग्य समल कनक पिण कननक छे, तथापि ते तदवस्थ'; कनक कार्यने साधवा, नही सर्वथा समर्थ तिम रागादि उपाधिसुं, मिलित कलुष जे ब्रहम; ध्याइये तो पिण तत्त्व विण, मीटे नही भव-भर्म जो ते सर्व उपाधिथी, परहां कहो पद्मनाभ; तो ते अमलने मलिन करी, गाता ‘शो आतम लाभ भूत-पतिने शिव कहे, दशरथसुतने राम; परमातम कहे कृष्णने, अहो ! मूढना काम निर्विकारने शिव कहो, घट-घट रमण ते राम; सिद्ध स्वरूप परमात्मा, इम मति आणेइ ठास ॥६४॥ ॥६५॥ ॥६६॥ ॥६७|| ॥६८॥ ॥६९॥ ॥७०॥ 1 अभण व्यक्तिनो. 2 तेनी ते अवस्था For Private and Personal Use Only
SR No.525320
Book TitleShrutsagar 2017 03 Volume 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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