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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 31 ११. नवांगीटीकाकार श्री अभयदेवसूरिजी संवत १०८८ मां १६ वर्षनी वये तेमने आचार्य पद मळ्युं हतुं अने तेमनो स्वर्गवास सं. ११३९नी लगभग थयो हतो, एटले तेमनुं आयुष्य आशरे ६७ वर्षनुं थयुं. जैन आगमो उपर शीलांकाचार्यकृत अगियार अंगमांथी आदिनां बे अंगोनी टीका मळती हती. तेथी तेमणे दैवी प्रेरणाथी नव अंग उपर टीका रची हती. जिनेश्वरसूरिजीकृत ‘षट्स्थानकभाष्य' उपर तेमनी टीका छे, हरिभद्रसूरीश्वरजीना 'पंचाशक' पर तेमनी टीका छे. अनेक ग्रन्थोनुं दोहन करी वृत्ति रचवानी तेमनी शैली अपूर्व छे. आजे पण नव अंगपरनी तेमनी टीका अनेक विचारणाओने वेग आपे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तंभनपार्श्वनाथजीनी प्रतिमा तेमनां ज आत्मबळे अने पुण्यप्रभावे प्रकट थयेल छे. ते समये तेमनुं बनावेल 'जयतिहुअण' स्तोत्र आजे पण प्राभाविक मनाय छे. तेमनी व्याख्यान अने विवेचन करवानी शक्ति अद्भुत हती. एक समय 'अम्बरन्तर ए ‘अजितशान्तिस्तव’नी गाथानुं शृंगारिक विवेचन करतां तेमनां पर एक राजकुमारी मोहित थइ हती. पछीथी वैराग्य अने शान्तरसना उपदेशथी तेओए तेने प्रतिबोधित करी हती. तेमनी सर्व टीकाओ ११२० थी ११२८ सुधीमां रचायेल छे. तेओनो स्वर्गवास कपडवंजमां थयो छे. February-2017 १२. श्री चंद्रप्रभसूरिजी सं. ११४९ मां तेओ विद्यमान हतां. तेमणे 'दर्शनशुद्धि' अने 'प्रमेयरत्न कोष' ए बे न्यायग्रन्थो रच्यां छे. सुभाषित ज्ञानगरीबी गुरुबचन नरमबचन निरदोष । एता कबहु न छंडियै सरधा शील संतोष ॥ श्री जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७, दीपोत्सवी अंकमांथी साभार (क्रमशः...) For Private and Personal Use Only ह.प्र. ७८२६९ मनुष्य को ज्ञानपिपासा, गुरु आज्ञा का पालन, नम्र वचन, दोषरहित जीवन, धर्म के प्रति श्रद्धा, सुंदर चारित्रपालन एवं संतोष जैसे गुणों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
SR No.525319
Book TitleShrutsagar 2017 02 Volume 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
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