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February-2017 भाषा घणी सचोट छे. हळवे हळवे पण जे वात तेओ बतावे ते हृदयमा तरत ज ऊतरी जाय छे. द्वादशदर्शन टीकाकार वाचस्पति मिश्रनी अने तेमनी लखाण शैलीमां समानता भासे छे. अनेकान्तजयपताकामां स्याद्वादनुं अनेक युक्ति-प्रयुक्तिओ पूर्वक स्थापन कर्यु छे. धर्मसंग्रहणीमां तेमणे आत्मा तथा धर्मनो विषय सुन्दर रीतिए बताव्यो छे, नास्तिकोना बौद्धोना तथा अन्योना मतोनो निरास को छे. षड्दर्शनसमुच्चय एकन्दर माध्यमिक दृष्टिए लख्यो छे अने तेमां केवळ छए दर्शनोनी मान्यता बतावी छे. छतां पण तेमां जैनदर्शन प्रत्येनी अभिरुचि तो व्यक्त करी ज छे. ललितविस्तरामां सचोटपणे जिनेश्वर भगवाननी महत्ता अने जैनदर्शननी विशुद्धता बतावी छे.
तेमणे पोताना ग्रन्थोमां अनेक दार्शनिक ग्रन्थो तथा ग्रन्थकारोनो उल्लेख कर्यो छे, तेमांनां मुख्य आ छे. अवधूताचार्य, सांख्य दार्शनिक आसुरि अने ईश्वरकृष्ण, मीमांसक कुमारिलभट्ट, भाष्यकार-पतंजलि, पातंजल योगाचार्य, वैयाकरण पाणिनी, भगवद्गोपेन्द्र, वैयाकरण भर्तृहरि, व्यासर्षि, विन्ध्यवासी, शिवधर्मोत्तर वगेरे ब्राह्मण धर्मिओ हतां.
कुक्काचार्य, दिङ्नागाचार्य, धर्मपाल, धर्मकीर्ति, धर्मोत्तर, भदन्तदिअ, वसुबन्धु, शान्तिरक्षित अने शुभगुप्त वगेरे बौद्धधर्मिओ हतां.
अजितयशा, उमास्वितिजी, जिनदास महत्तर, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, देववाचक, भद्रबाहु, मल्लवादीजी, समन्तभद्र, सिद्धसेनदिवाकर, संघदासगणि वगेरे आर्हत दार्शनिको हतां.
वासवदत्ता अने प्रियदर्शना तथा उपर बतावेल ग्रन्थकारोना केटलाएक ग्रन्थोनो पण उल्लेख छे. तेमणे चैत्यवास सामे झुबेश उठावी हती अने तेमां पण घणी सुधारणा करी हती.
प्रो. हर्मन याकोबीए ‘समराइञ्चकहा'नी प्रस्तावनामां श्री हरिभद्रहसूरिजी माटे लख्यु छे के - __ “हरिभद्रे तो श्वेताम्बरोना साहित्यने पूर्णतानी टोचे पहोंचाड्यु. जो के तेमना ग्रन्थो केटलाक प्राकृतमां छे, परंतु घणाखरा संस्कृतमां ज छे. आमां जैन सम्प्रदायना पदार्थ वर्णन उपरांत विरोधी मतवाळा ब्राह्मणो तेमज बौद्धोना साम्प्रदायिक धोरणो बाबत एक टंको ख्याल, केटलीक चर्चा अने तेनां खंडनो पण छे. आ जातनां ग्रन्थोमां हरिभद्रनी दिङ्नागना न्यायप्रवेश परनी टीका, जोके ते एक प्रकरण नथी पण, बहु उपयोगी
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