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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 20 January-2017 ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ सरधा अनुभव संमिलत, सुध व्यवहार विधान। अविकल ए तिहुंकाल में, शिवपद साधन जान या विण जग भूलौ फिरे, चौगति चाचरवीच । कलुषित काल अनादि को, राग द्वेष भ्रम कीच तीन लोक में संचरै, मोहराज परिवार । अहंकार ममकार फुनि, दोय सुभट दुर्वार इनके वश सब जग भया, नितु परभाव रमंत । सुपनै ही जाणें नहीं, निज घर को विरतंत समकित व्रत धारक सुगुण, कितेक उत्तम जीव । धर्म पक्ष के संचरै, आतम भाव सदीव ॥ उक्त: संक्षेपत: तत्त्वोपदेशः॥ अथ हितशिक्षा कथनम् चेतन चतुर विचार चित, मत धार मन अहंकार । है बहुतेरे जगत में, पुण्यवंत गुणधार अल्प बुद्धि बल विभव सुख, धारक तें इण वार। आगुं सब वाते अधिक, भए बहुत नर नार प्रबल अहं कृतियोग से, राज रिद्धि सब खोय । दुर्योधन रावण प्रमुख, गए नरकपुर जोय या शरीर पर वस्तु परि, अहं बुद्धि मत लाव। ते अमूर्त चिद्रूप है, यौ मूर्ती जड़ भाव तृष्णा वश धन मेलवे, न करत निज गुण चिंत। नयन जुगल मुद्रित भयां, को नही अपना मीत चेत चेतन चित अंतरे, चेतन मत हुय बाल। ममता जाल म पाड मन, कर निज गुण संभाल मेरी मेरी क्या करे, तेरा को नहि आन । तन धन जोवन बंधु जन, सबही तें पर जान ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525318
Book TitleShrutsagar 2017 01 Volume 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
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