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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 18 I पुत्र कहे नर नारी केरी, काया अशुचि पिछाणो रूधिर मांस मल मुत्रादीक नो, आश्रय ए तुम जाणो माय कहै मणि कनकादिक, बहु द्रव्य अछै घर मांहे । ते निज इच्छा दान भोगथी, विलसी व्रत ऊमाहै थावच्चा सुत कहै ए धन नौ, मारै काम न होई । चोर अगनि जल राजादिक, बहु एहना लागु हो माय भणै संयम अति दुक्कर, घोर परिसह सहवा । तुं सुकमाल शरीर मनोहर, नही पलस्यै व्रत एहवां कुमर कहे संयम नही दुक्कर, धीर वीर सा पुरसां । दुक्कर छै ए विषय विगूतां, कायर नै का पुरस इण परि बहु वचने परिचायौ, पण ते मन नवि धारे । विण इच्छायै अनुमति आपी, माता पिण तिण वारै Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only November-2016 ढाल-३ (ढाल - बे बे मुनिवर नी एहनी) थावच्चा माता तिण अवसरे रे, जाये कृष्ण नरेसर पास रे । विनय करिने आपे भेटणौ, भाखै इणि परि वचन विमास रे राजेसर इक सुत छै माहरै, सुंदर जीवन प्राण आधार रे । संयम लेवा ते इच्छुक थयो, करवुं छे मुझ उच्छव सार रे छत्र चामर वलि मुगट मनोहरू, ते कारण दीजै महाराज रे । कृष्ण कहै तुम्ह जावौ निज घरै, हुं करसुं तसु उच्छव काज गज चढी आवे थावच्चा घरे, भाखे इण परि कृष्ण नरेस रे तुं व्रत ल्यै मत देवाणुप्पिया रे, भोगव नर भव भोग विशेष रे जेह पवन तुझ ऊपरि संचरे, तेह निवारण सगति न मुज्झ रे । बांह ग्रही छै में हिव ताहरी, कोय न करस्यै बाधा तुज्झ रे कुमर कहे दुर्जय रिपु माहरे, मरण जरा नामे दुख दिंत रे । तेह निवारो जे तुमे आवता, तो हुं भोगवुं भोग निचिंत रे T ॥१८॥ माता. ॥१९॥ मो. ॥२०॥ माता. ॥२१॥ मो. ॥२२॥ माता. ॥२३॥ मो. 112811 ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ ॥२८॥ ॥२९॥
SR No.525316
Book TitleShrutsagar 2016 11 Volume 03 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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